महाराज शांतनु के पुत्र देवव्रत को उनके त्याग और समर्पण के लिए जाना जाता है। आइए जानते है अर्जुन के लिए क्यों मुश्किल था भीष्म को हराना?
भीष्म को कुल श्रेष्ठ भी कहा जाता है। भीष्म बेहद बलशाली थे, अपने पूरे जीवन में भीष्म पितामह एक भी युद्ध नहीं हारे थे।
भीष्म पितामह को काशी नरेश की पुत्री अंबा से श्राप मिला था। भीष्म को अंबा से यह श्राप मिला था कि वह युद्ध भूमि में वध के समय उनके सामने रहेंगी।
कुरु श्रेष्ठ भीष्म को उनके पिता से इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। भीष्म को उनके त्याग, तप और समर्पण के लिए कई वरदान प्राप्त थे।
जब न्याय के लिए अम्बा गुरु परशुराम के पास पहुंची तो उनकी विनती पर गुरु परशुराम ने भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा था। भीष्म युद्ध देख भगवान शिव ने अम्बा को यह वरदान दिया था कि वह भीष्म के मृत्यु की वजह बनेंगी।
भीष्म का जीवन पीड़ा से भरा हुआ रहा था। वह बिना राजा के लंबे समय तक हस्तिनापुर के सिंहासन के लंबे समय तक रक्षक रहे थे। सिंहासन की रक्षा में उन्होंने कई पाप भी किए थे। अम्बा और गांधारी का विवाह उन्होंने बल के दम पर कराया था।
महाभारत के युद्ध में जब तक भीष्म लड़ रहे थे, तब तक उन्हे कोई भी पराजित नहीं कर सका था। जब कौरवों की सेना जीत रही थी, तभी उन्होंने अपने मृत्यु का रहस्य पांडवों को बता दिया था।
श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है न कि इच्छा विजय का। श्री कृष्ण ने भीष्म को उनके कर्म का आईना दिखाया तो वह खुद ही अर्जुन के सामने निशस्त्र हो गए थे। इसके पश्चात अर्जुन ने उनपर बाणों से वार किया था।