हिंदू धर्म में शनिदेव का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है और इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। आइए जानते हैं कि भगवान शनि को न्याय देवता की उपाधि कैसे मिली-
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव भगवान सूर्य और माता छाया के पुत्र है। इन्हें क्रूर ग्रह का श्राप उनकी पत्नी से प्राप्त हुआ था।
शनिदेव ने वरदान के रुप में मांगा कि वह चाहते हैं कि उनकी पूजा अपने पिता से अधिक हो, जिससे सूर्य देव का अंहकार टूट जाएं।
भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया की तुम लोगों को उनके कार्मो के अनुसार फल प्रदान करोंगे और तुम नव ग्रहों में श्रेष्ठ हो जाएगे।
शनिदेव ग्रह की गणना अशुभ ग्रहों में होती है और नव ग्रहों में सातवें स्थान पर आते हैं। वह एक राशि में 30 महीने तक निवास करते हैं।
मकर और कुंभ राशि के स्वामी ग्रह शनि है। शनि की महादशा 19वर्ष तक रहती है और वह कार्मो के अनुसार फल देते हैं।
जो लोग बुरे काम नहीं करते हैं उन्हें शनिदेव से डरने की जरूरत नहीं है। ऐसे लेगों से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
ऐसे भगवान शनि को न्याय देवता की उपाधि मिली। एस्ट्रो से जुड़ी ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें NAIDUNIA.COM