महाभारत के युद्ध में कई बलशाली योद्धा थे। कर्ण और अर्जुन दोनों ही बेहद शक्तिशाली योद्धा थे। आइए जानते है महाभारत में क्यों मुश्किल था कर्ण को हराना?
पांडू पुत्र अर्जुन एक शक्तिशाली योद्धा थे बल्कि बेहतरीन धनुरधारि भी थे। युद्ध में अर्जुन ने कई बलशाली योद्धाओं का पराजित किया था।
सूर्यपुत्र कर्ण महाभारत की युद्धभूमि में सबसे बड़े योद्धाओं में से एक थे। वह खुद को अर्जुन से भी सर्वश्रेष्ठ धनुरधारि बताते थे।
अर्जुन ने अपनी विद्या गुरु द्रोणाचार्य से ली थी, जबकि अंगराज कर्ण ने शस्त्र और शास्त्रों का ज्ञान गुरु परशुराम से लिया था। गुरु द्रोणाचार्य के मुकाबले गुरु परशुराम ज्यादा श्रेष्ठ माने जाते थे।
कर्ण ने गुरु परशुराम से शिक्षा लेने के लिए यह कहा था कि वे उच्चकुल में जन्में है। जबकि कर्ण एक सूत पुत्र थे। जब इस झूठ का खुलासा हुआ तो उन्होंने कर्ण को श्राप देने के बजाय उन्हें कहा कि इस झूठ का दंड उन्हें युद्ध भूमि में मिलेगा।
श्री कृष्ण जब अर्जुन को युद्धभूमि से दूर ले जा रहे थे, तो उनके पीछे-पीछे कर्ण भी चले गए। कर्ण लगातार अर्जुन को युद्ध के लिए ललाकर रहे थे। युद्धभूमि से दूर कही कर्ण का रथ फंस जाता है।
जिस समय कर्ण अपने रथ को निकाल रहा होता, श्री कृष्ण अर्जुन को आदेश देते है कि वह उसपर वार करें। कर्ण इसे अधर्म कहते है। कर्ण की इस बात पर श्री कृष्ण क्रोधित होकर उन्हें उनके द्वारा किए अधर्मों की याद दिलाते है।
श्री कृष्ण कहते है कि कर्ण तुम वहीं व्यक्ति हो, जिसने अपने भाई के पुत्र अभिमन्यु को मारा है। तुम वहीं हो जिसने भरी सभी में द्रौपदी को वैश्या कहा था। ऐसे में तुम धर्म और अधर्म के बारे में बात करने लायक नहीं हो।
श्री कृष्ण की बाते सुनकर कर्ण खुद ही मृत्यु के लिए तैयार हो जाता है। यदि कर्ण अपने रथ को बाहर निकाल लेते और दोबारा युद्ध करते, तो उन्हें हरा पाना अर्जुन के लिए मुश्किल हो सकता था।