Meghnad: रावण के पुत्र मेघनाद का रामायण में वीर प्रतापी योद्धा के रूप में वर्णन मिलता है। रावण को अपने इस पुत्र पर बड़ा गर्व था। रावण को लगता था कि मेघनाद के होते उसका ब्रह्मांड में कोई बाल भीं बांका नहीं कर सकता है। उसके पास दिव्यास्त्र के साथ मायावी शक्तियां भी बेशुमार थी। उसके पराक्रम और बल के आगे बड़े-बड़े योद्धाओं नें घुटने टेक दिए थे।
ब्रह्मा ने दिया था मेघनाद नाम
रामायण में वर्णन है कि जब मेघनाद का जन्म हुआ था तो मेघ के गर्जन के समान काफी जोर से रोया था। इसलिए उसका नाम मेघनाद स्वयं ब्रह्मा ने रखा था। ऐसा भी कहा जाता है कि वह एक विशाल और भयानक वटवृक्ष के पास भूतों को बलि देकर युद्ध के लिए प्रस्थान करता था इसलिए वह युद्ध अदृश्य होकर करता था। पौराणिक मान्यता के अनुसार रावण ने अपनी शक्तियों से नौ ग्रहों को भी कैद कर लिया था। उसने मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रहों को उच्च राशि में स्थापित होने का आदेश दिया। इससे भयग्रस्त ग्रहों को भविष्य की घटनाओं की चिंता सताने लगी। ऐसे में शनि देव ने अपनी राशि बदल ली जिससे मेघनाद अपराजेय और दीर्घायु नहीं बन पाया।
इंद्र को किया था पराजित
मेघनाद ने स्वर्गाधिपति इंद्र को पराजित किया था, इसलिए मेघनाद को इंद्रजीत भी कहा जाता था। देवलोक विजय के लिए जब रावण ने देवताओं से युद्ध किया था उस समय बड़ी संख्या में राक्षस मारे जा रहे थे। तब मेघनाद ने माया से चारों ओर अंधकार फैलाकर इन्द्र को बंदी बना लिया था और वह इंद्र को लेकर लंका चला गया था। तब सभी देवता ब्रह्मा को लेकर मेघनाद के पास गए और इंद्र को छोड़ने के लिए कहा।
तब ब्रह्मा ने इंद्र को छोड़ने के बदले उसको यह वर दिया कि किसी भी युद्ध को करने से पहले यज्ञ करने पर अग्नि से उसके लिए घोड़े सहित एक रथ निकलेगा, जिन पर बैठकर युद्ध करन से वह अजेय रहेगा, लेकिन यदि कभी यज्ञ पूरा नहीं हो पाया तो वह युद्ध में मारा जायेगा। इसके बाद मेघनाद ने निकुंभिला देवी के स्थान पर जाकर अग्निष्टोम, अश्वमेध आदि सात यज्ञ करके शिव से अनेक वर प्राप्त किये थे। रावण के आदेश पर मेघनाद श्रीराम से युद्ध के लिए रवाना हुआ तो उसने पहले यज्ञ का आयोजन किया, मांस और रक्त की आहुति से अग्नि को जलाया। तभी लक्ष्मण ने उसके यज्ञ में विघ्न डाला और एक भीषण युद्ध के बाद उसका वध कर दिया।