नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन। अश्विन मास की शरद पूर्णिमा 17 अक्टूबर को रवि योग के महासंयोग में मनाई जाएगी। इस दिन मध्य रात्रि में चंद्रमा की कला अपने उच्च अंश पर होती है। मान्यता है कि चंद्रमा की पूर्ण ऊर्जा वनस्पति पर पड़ती है। यह वनस्पति और फसलें अमृत के रूप में हमें प्राप्त होती हैं, इसलिए शरद पूर्णिमा का विशेष दिन माना जाता है। पंचांग की गणना से इस बार शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को दोपहर बाद से लगेगी, जो 17 अक्टूबर को देर शाम तक रहेगी, इसलिए उदय तिथि की मान्यता के अनुसार 17 अक्टूबर को शरद उत्सव मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला ने बताया कि धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। शास्त्रीय मत यह है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। वह यह देखती हैं कि रात्रि जागरण कर उपासना कौन कर रहा है। मान्यता है इस दिन रात्रि जागरण की माता लक्ष्मी की उपासना करने से धन धान्य की प्राप्ति होती है।
पंडित डब्बावाला ने बताया कि धर्मशास्त्र में चार रात्रि विशेष बताई गई हैं। इनका उल्लेख कालरात्रि, मोह रात्रि, सिद्ध रात्रि और दारुण रात्रि के रूप में मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को महारास हुआ था, ऐसा उल्लेख भागवत में आता है। इस महारास में कृष्ण के साथ गोपियों का रास बताया गया है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपनी उपस्थिति प्रस्तुत की थी। इस दृष्टि से इस रात्रि की आराधना विशेष मानी जाती है।
शरद ऋतु के चंद्रमा का पूर्णिमा तिथि से घनिष्ठ संबंध है। पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा की यह कला अपने पूर्ण यौवन पर होती है। मध्य रात्रि के चंद्रमा से अमृत की बारिश होती है। अमृत की बारिश संसार में प्राण तत्व को जीवित रखती है। प्रकृति की अपनी लीला है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में भी गणित ज्योतिष का आधार पर देखें, तो शरद ऋतु के आरंभ होते ही परिवर्तन की स्थितियां ऋतु चक्र में दिखाई देती है, लेकिन पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा की विशेष कला अपने उच्च कक्षा में होती है।