Annapurna stotram: आदिशक्ति जगत जननी मां जगदंबा के विभिन्न रूपों में से एक अन्नपूर्णा रूप भी हैं जिन्हें अन्न की देवी माना जाता है। शास्त्रों में भी अन्न की इस देवी का विस्तार से वर्णन किया गया है। यदि इनकी कृपा हो तो कोई भी कभी भूखा नहीं सोता है। परंतु देवी की कृपा न हो तो कहा जाता है कि कितना ही धन आपके पास क्यों न हो आपको दो वक्त की रोटी सुख से नहीं मिलेगी।
किसी के चलते आदिगुरू शाकराचार्य ने इसका उपाय निकाला और उपाय के रूप में अन्नपूर्णा स्तोत्र का निर्माण किया। इस स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करने पर मां अन्नपूर्णा की कृपा जरूर प्राप्त होगी। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से आपको धन धान्य की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि जिस घर में अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ होता है या घर का प्रमुख इसका पाठ करता है तो उसके घर में कभी अन्न धन की कमी नहीं होती है।
अन्नपूर्णा स्त्रोत
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।
नानारत्न-विचित्र-भूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी।
मुक्ताहार-विलम्बमान विलसद्वक्षोज-कुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगुरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्माऽर्थनिष्ठाकरी।
चन्द्रार्कानल-भासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्य-समस्त वांछितकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
कैलासाचल-कन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी।
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओंकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी।
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी।
वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी।
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।
कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी।
वामस्वादु पयोधर-प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी।
चन्द्रार्काग्नि समान-कुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
माला पुस्तक-पाश-सांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी।
शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी।
साक्षान्मोक्षरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे !
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।