खास वजह से इमली के बीज बेचते थे डॉ कलाम, अपनी किताब में गर्व से किया इसका जिक्र
इमली के बीज बेचकर पढ़ाई का खर्च निकालते थे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम।
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Publish Date: Mon, 04 Feb 2019 01:09:16 PM (IST)
Updated Date: Mon, 04 Feb 2019 01:15:36 PM (IST)
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा जीवन ही प्रेरणादायी किस्सों से भरा पड़ा है। बड़े होकर देश की सुरक्षा के लिए मिसाइल बनाने और राष्ट्रपति पद तक का सफर तय करने से पहले डॉ. कलाम ने बचपन में ऐसे-ऐसे काम किए थे, जिन्होंने उन्हें पल-पल गढ़ा। ऐसा ही एक काम था इमली के बीज बेचकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालना।
यह किस्सा सन् 1939 का है, जब बालक अब्दुल कलाम महज आठ साल के थे। चूंकि वे गरीब परिवार से थे इसलिए उनके पास पढ़ाई के लिए पैसा नहीं होता था। लेकिन, उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने अपने चचेरे भाई शम्सुद्दीन के साथ मिलकर अखबार बांटना शुरू कर दिया। अलसुबह ट्रेन से उनके गांव तक अखबार पहुंचते और वे कभी पैदल तो कभी साइकिल से अखबार बांटते। इससे उन्हें बहुत कम पैसा मिलता, लेकिन जितना मिलता, उससे उनकी पढ़ाई का खर्च निकल जाता।
इस बीच अचानक दूसरा विश्व युद्ध (1939- 1945) शुरू हो गया। चूंकि बालक कलाम अखबार बांटने के साथ-साथ अखबार पढ़ भी लेते थे, इसलिए उन्हें इसकी जानकारी समाचारों से मिली। इसी बीच अचानक उनकी नजर एक खबर पर गई, जिसमें इमली के बीजों की भारी मांग के बारे में कुछ लिखा था। संभवतः इन बीजों की आवश्यकता युद्ध से जुड़े किसी काम में थी, इसलिए इनके बदले पैसा भी अच्छा मिल जाता था। बालक कलाम ने अपने चचेरे भाई को वह खबर बताई और दोनों ने इमली के बीज इकट्ठा करना शुरू किया। कभी गांव तो कभी जंगल से वे बीज इकट्ठा करते और उन्हें बेच देते। इससे उन्हें इतना पैसा मिल जाता कि अपनी पढ़ाई और किताबों का खर्च आसानी से निकाल लेते। डॉ. कलाम ने इसका जिक्र अपनी आत्मकथा में पूरे गर्व और भावप्रवण अंदाज में किया है कि उन दिनों का जीवन कितना अच्छा था।