धीरज गोमे, नईदुनिया, उज्जैन। धर्म जब छैनी बन जाए और मर्म जब पाषाण में उतर आए, तो फिर एक ऐसी मूर्ति आकार लेती है, जो श्रद्धालुओं के मन को आस्था और विश्वास से भर देती है। इन दिनों धर्मनगरी उज्जैन में ऐसा ही कुछ घटित हो रहा है।
यहां ओडिशा के कलाकार पत्थरों को कुछ इस कदर तराश रहे हैं कि मानो पाषाण में वे प्राण फूंक रहे हैं। यहां 15 फीट ऊंची भगवान शिव की मूर्ति बनाई जा रही है, जिसे अगले वर्ष ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र श्री महाकाल महालोक में स्थापित किया जा सकता है।
पिता से विरासत में मिली शिल्पकला को पुत्रों के साथ आगे बढ़ा रहे पुरी (ओडिशा) के सातवीं पास अक्षय महाराणा ने अंतत: 15 फीट के लाल पाषाण में प्राण डाल दिए हैं। पत्थर में भगवान शिव की झलक अब साफ-साफ नजर आने लगी है।
शिल्पकार अक्षय महाराणा ने ‘नईदुनिया’ से चर्चा में बताया, "भगवान की मूर्ति बनाई नहीं जाती, बस बन जाती है। मूर्ति बनाना काम नहीं तपस्या है, जिसमें अपार श्रद्धा और भावनाएं जुड़ी होती हैं।"
महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ ने मूर्ति निर्माण के लिए दुनियाभर के शिल्पकारों को आमंत्रण भेजा था। आग्रहपूर्वक कहा था, ‘उज्जैन आइए, मूर्ति बनाइए और मानदेय पाइए। आपकी बनाई मूर्ति को वक्त आने पर ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र महाकाल महालोक, वीर भारत संग्रहालय सहित भिन्न पर्यटन स्थलों पर स्थापित किया जाएगा। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।’
कुछ भारतीय कलाकार आगे आए, जिन्हें मूर्ति बनाने में उपयोगी सामग्री शोधपीठ ने उपलब्ध कराई। भगवान शिव और सप्त ऋषि की मूर्ति 15 फीट ऊंची, 10 फीट चौड़ी और साढ़े चार फीट मोटी बन रही है। एक मूर्ति का मानदेय 15 लाख रुपये बताया गया है।