Kans Vadotsav: शाजापुर में दशमी पर धूमधाम से होगा कंस का वध, 10 फीट ऊंचा पुतला सिंहासन पर बिठाया
Kans Vadotsav: कंस वधोत्सव समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार ने बताया कि अनुसार मथुरा के बाद नगर में इस आयोजन को भव्य तरीके से मनाया जाता है।
By Hemant Kumar Upadhyay
Edited By: Hemant Kumar Upadhyay
Publish Date: Mon, 20 Nov 2023 11:10:17 AM (IST)
Updated Date: Mon, 20 Nov 2023 11:10:17 AM (IST)
HighLights
- मथुरा के बाद शाजापुर नगर में इस आयोजन को भव्य तरीके से मनाया जाता है।
- कंस वध की परंपरा अन्याय व अत्याचार पर जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है।
- शहर की गलियों से कंस वध से पहले पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे देव और दानवों की टोलियां निकलती है।
Kans Vadotsav: नईदुनिया प्रतिनिधि, शाजापुर । शहर में कार्तिक माह की दशमी पर होने वाले कंस वधोत्सव की तैयारी हो चुकी है। 270 वर्षों से शहर में अनूठी परंपरा निभाई जा रही है। यह कार्यक्रम श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के अलावा यहां भी होता है। इस आयोजन में कंस और कृष्ण की सेना आपस में जमकर वाक् युद्ध करती हैं। इसके बाद श्री कृष्ण द्वारा कंस का वध किया जाता है।
घमंड व अत्याचार के प्रतीक कंस का 10 फीट ऊंचा पुतला भी सिंहासन पर विराजित हो चुका है। कंस चौराहा स्थित दरबार में बैठाए गए कंस के पुतले का वध दशमी के दिन किया जाएगा। वधोत्सव समिति द्वारा शाजापुर में भी मथुरा में श्रीकृष्ण के मामा कंस के वध उत्सव की परंपरा का निर्वहन प्राचीन समय से किया जाता रहा है।
आसपास के जिलों के लोग पहुंचते हैं शाजापुर
आयोजन के लिए शहर ही नहीं बल्कि शाजापुर जिले सहित आसपास के जिलों के लोग भी इसमें शामिल होते हैं। कंस वध की परंपरा अन्याय व अत्याचार पर जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है।
यह है इतिहास
कंस वधोत्सव समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार ने बताया कि अनुसार मथुरा के बाद नगर में इस आयोजन को भव्य तरीके से मनाया जाता है। गोवर्धन नाथ मंदिर के मुखिया स्व. मोतीराम मेहता ने करीब 270 वर्ष पूर्व मथुरा में कंस वधोत्सव कार्यक्रम होते देखा और फिर शाजापुर में वैष्णवजन को अनूठे आयोजन के बारे में बताया। इसके बाद से ही परंपरा की शुरुआत हो गई। मंदिर में ही 100 वर्ष तक आयोजन होता रहा किंतु फिर इसे नगर के चौराहे पर किया जाने लगा।
श्रीकृष्ण के वेश में सजेंगे कलाकार
कंस वध के पूर्व रात आठ बजकर 30 मिनट पर श्री बालवीर हनुमान मंदिर परिसर से चल समारोह शुरू होगा, जो शहर के मुख्य मार्गों से होता हुआ कंस चौराहे पर पहुंचेगा, जहां वाकयुद्ध के बाद रात 12 बजे श्रीकृष्ण बने कलाकारों द्वारा कंस का वध किया जाएगा।
शहर की गलियों से कंस वध से पहले पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे देव और दानवों की टोलियां निकलती है। राक्षस हुंकार भरते है तो वहीं देवों की टोली भी वाकयुद्ध में पीछे नहीं रहती है। इसके बाद गवली समाज के युवाओं द्वारा पुतले को लाठियों से पीटते हुए ले जाया जाएगा।