खंडवा। एक हजार मेगावाट की इंदिरा सागर बांध परियोजना में डूबे हरसूद की 30 जून को विस्थापित संघ 13वीं बरसी मना रहा है। इस मौके पर पुराना हरसूद स्थित खेड़ापति हनुमान मंदिर में सुबह 10 बजे पूजा-अर्चना की जाएगी। साथ ही नया हरसूद की समृद्धि के लिए 13 पंडितों द्वारा 13 दीपक जलाकर मंत्रोच्चार के साथ आरती की जाएगी।
हरसूद विस्थापित संघ के अनुराग बंसल ने बताया कि शुक्रवार को हम हर साल पुराने हरसूद पहुंचकर अपनी यादों को ताजा करते हैं लेकिन अगले साल से हम भी नहीं आएंगे। उन्होंने कहा धर्मशास्त्र और ज्योतिष में तेरहवीं का विशेष महत्व है। किसी की मौत पर तेरहवीं मनाने के बाद घर-परिवार के लोगों का सूतक उतर जाता है। हरसूद शहर की मौत होने को तेरह साल पूरे होने जा रहे हैं।
इस लिहाज से हरसूद की तेरहवीं होने के बाद हमारा भी सूतक उतर जाएगा। हरसूद विस्थापित संघ ने हरसूद की तेरहवीं मनाने के लिए कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी पत्र भेजा है। पत्र में लिखा है कि वे भी हमारे दुख में शामिल हों और पुराने हरसूद आएं। हालांकि इस पत्र का अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
रेलवे स्टेशन का नाम हो हरसूद-छनेरा
विस्थापित संघ ने गुरुवार को सांसद ज्योति धुर्वे से दूरभाष पर चर्चा कर रेलवे स्टेशन का नाम नया हरसूद-छनेरा संयुक्त रूप से रखने व कुछ ट्रेनों के स्टॉपेज की मांग की। साथ ही रेल मंत्रालय व गृह मंत्रालय को पत्र लिखने का आग्रह किया। संघ पदाधिकारियों ने बताया कि सांसद ने शीघ्र ही रेलमंत्री से मिलकर मांग पूरी कराने का आश्वासन दिया है।
13 साल में वकीलों की फीस चुकाई 10 करोड़
इंदिरा सागर बांध परियोजना में हरसूद सहित 250 गांव डूबे और हजारों लोगों को विस्थापित किया गया। किसी को कम तो किसी को ज्यादा मुआवजा मिला। अधिकांश लोग जो कुछ मिला, वह लेकर चुप हो गए लेकिन कई लोगों ने विसंगति पर न्यायालय की शरण ली। पुनर्वास और विस्थापन का काम करने वाली एनएचडीसी (नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कंपनी) ने विस्थापितों के खिलाफ न्यायालयीन लड़ाई लड़ने में कोई कसर नहीं रखी।
हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 13 साल में कंपनी ने वकीलों और कोर्ट फीस पर ही 10 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। यह अलग बात है कि एनएचडीसी ने प्रभावितों को जितना मुआवजा बांटा था, उससे दोगुना से भी ज्यादा इन 13 सालों में ही कमा लिया है।
विस्थापित दीपक कुमरावत ने बताया कि सरकार ने रविशंकर प्रसाद, विवेक तन्खा, आरएनसिंह, सुर्पण श्रीवास्तव जैसे बड़े वकीलों को विस्थापितों के खिलाफ खड़ा किया था। इसके बाद भी कई विस्थापितों को न्याय मिला तो कई अब भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अब भी हाईकोर्ट में ही सैकड़ों अपीलें लंबित हैं।
विस्थापितों की लड़ाई लड़ने वाले हरसूद निवासी धर्मराज सांड ने कहा कि विस्थापन के बाद विकास तो कोसों दूर रह गया लेकिन हम प्रताड़ित हो रहे हैं। एनएचडीसी ने विस्थापन पर लगभग 1200 करोड़ रुपए खर्च किए लेकिन महज 13 साल में ही उसका लाभ पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। ऐसे में विस्थापितों को न केवल उनके संपूर्ण अधिकार दिए जाने चाहिए बल्कि सरकार को पुनर्वास स्थलों पर नए सिरे से काम करना चाहिए। -
न बाजार बसा, न लोगों को रोजगार मिला
पुराने हरसूद से लगभग 15 किलोमीटर दूर नया हरसूद 250 एकड़ जमीन पर बसाया गया है। विस्थापन के 13 साल बाद भी यहां न तो बाजार बसा और न ही लोगों को रोजगार मिल सका। पुनर्वास स्थल पर वीरानी का आलम रहता है।
लंबे समय से डूब प्रभावितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले हरसूद के विस्थापित अनुराग बंसल व चंद्रकांत सांड ने कहा कि नए हरसूद में विस्थापितों से सबकुछ छीन गया है। पुराने हरसूद में 300 से अधिक गांवों का व्यापार जुड़ा हुआ था तो वर्तमान में 25-30 गांव छनेरा से जुड़े हुए हैं। रेलवे स्टेशन, नगर पंचायत का नाम भी हरसूद की जगह छनेरा ही जाना जा रहा है। अनुराग बंसल ने कहा हमारी मातृभूमि, हमारी यादें पुराने हरसूद में दफन हो गई हैं। नए हरसूद में रोजगार के कोई साधन नहीं हैं। इसी वजह से यहां के अधिकांश लोग आसपास के शहरों में रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर हैं।
हरसूद के बाद निसरपुर भी आएगा डूब की जद में
जिले में स्थित इंदिरासागर और ओंकारेश्वर बांध में कई गांव के हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। इंदिरा सागर बांध का तो पुनर्वास और विस्थापन का काम सरकार की तरफ से लगभग पूरा हो गया है। ओंकारेश्वर बांध को पूरी क्षमता से भरने के लिए अवश्य अभी कुछ गांवों को खाली कराया जाना बाकी है। इसी बीच गुजरात में स्थित सरदार सरोवर बांध में जलस्तर बढ़ाए जाने की घोषणा और खरगोन जिले के महेश्वर बांध परियोजना के डूब क्षेत्र में पुनर्वास-विस्थापन की प्रक्रिया चलने से नर्मदा पट्टी के गांवों में हलचल मची हुई है। हरसूद के बाद सबसे बड़ी डूब की जद में धार जिले का निसरपुर आएगा।
- इंदिरा सागर बांध में 250 गांव प्रभावित हुए थे। इसमें सबसे बड़ा विस्थापन 22 हजार की आबादी वाले हरसूद शहर का था। हरसूद के बाशिंदों को सपने दिखाए गए थे कि पुनर्वास स्थल पर पहले से बेहतर जीवन यापन करने को मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। नए हरसूद में 2500 से अधिक मकान तो बन गए लेकिन लोगों को रोजगार नहीं मिला।
- ओंकारेश्वर बांध परियोजना में घोघलगांव सहित कुछ अन्य गांव आज भी जमीन के बदले जमीन सहित अन्य अधिकारों की मांग को लेकर अपने-अपने घरों में डटे हुए हैं। बारिश से पहले सरकार बांध में पूरी क्षमता से पानी भरने का प्रयास करती है तो इन गांवों में पानी भर जाता है लेकिन विरोध और न्यायालयीन आदेश के चलते फिर से अफसर मन मसोसकर रह जाते हैं।
- महेश्वर बांध परियोजना लगभग 20 साल से निर्माणाधीन है। कुछ माह पहले सरकार ने परियोजना पूरी करने की जिम्मेदारी एमपीपीजीसीएल को दे दी है। इसी कंपनी की तरफ से पुनर्वास और विस्थापन का काम शुरू कर दिया गया है। इसके तहत कुछ गांवों में मुआवजा बांटा जा रहा है तो कुछ गांवों में इसकी प्रक्रिया चल रही है। बांध बनकर पूरी तरह तैयार है और पुनर्वास विस्थापन का काम होते ही इसमें पानी भरने की तैयारी की जा रही है।
- सरदार सरोवर बांध में 121.92 मीटर से 138.68 मीटर जल स्तर किए जाने की तैयारी है। इसके लिए बांध के गेट भी लगा दिए गए हैं। 11 हजार की आबादी वाला निसरपुर सहित अन्य कई गांव 138.68 मीटर तक पानी भरने पर प्रभावित होंगे। सरकार ने 31 जुलाई तक पूर्ण पुनर्वास करने के निर्देश दिए हैं, जो व्यावहारिक तौर पर संभव नजर नहीं आता।