नईदुनिया, जबलपुर (Bhairav Ashtami 2024)। जबलपुर के अन्य शिव व भैरव मंदिरों में भी उमड़ेगी भीड़,नर्मदा किनारे भी जुटेंगे श्रद्धालुनईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर : काल भैरव की उपासना का महापर्व भैरव अष्टमी शनिवार को है। सिद्ध तांत्रिक मठ देश में केवल तीन हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दूसरा काशी और तीसरा महोबा में है। तांत्रिकों के मतानुसार जबलपुर का बाजनामठ ऐसा तांत्रिक मंदिर है, जिसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है।
भैरव मंदिर के भक्त मंडल से जुड़े सदस्य बताते हैं कि बाजनामठ में पूजा-अर्चना से लोगों को चमत्कारिक लाभ हुए हैं। यहां तेल व पुष्प चढ़ाने से शनि व राहु की पीड़ा से राहत मिलती है। इसी उम्मीद से हजारों की संख्या में भक्त आते हैं और उनकी मुराद पूरी भी होती है। प्राचीन मंदिर में आज भी जबलपुर सहित आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग शनिवार को तेल चढ़ोने के लिए आते हैं। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं।
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। ऐसा उल्लेख शिव महापुराण में है। इस तिथि को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
ज्योतिषाचार्य सौरभ दुबे के अनुसार, शनिवार को कालाष्टमी मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि की शुरुआत 22 नवंबर को रात नौ बजकर दो मिनट पर हो गई है। अष्टमी तिथि का 23 नवंबर शनिवार को रात 10 बजकर 5 मिनट पर होगा।कालभैरव अष्टमी के दिन बाबा काल भैरव की पूजा रात्रि के समय निशिता मुहूर्त में की जाती है। इसलिए इस बार भैरव अष्टमी शनिवार को मनाई जाएगी।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव जयंती का विशेष महत्व है।इस बार भैरव अष्टमी के दिन पद्म योग, ब्रह्म योग और इंद्र योग के साथ ही रवि योग बन रहा है। माना जाता है कि इन योगों में भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
शिवपुराण के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। अत: इस तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
गुप्तेश्वर पीठाधीश्वर स्वामी डा. मुकुंददास महाराज ने बताया कि चौसठ योगिनी और 81 भूत, प्रेत, पिशाचों को जाग्रत करने का यह विशेष स्थान है। जहां तंत्र साधना की शिक्षा दी जाती थी। उस समय तंत्र साधना को जाग्रत करने के लिए भैरव मंदिर को विशेष स्थान बनाया गया था। शिव के गण के रूप में भैरव को जाग्रत किया जाता है। यहां आदि शंकराचार्य ने भी पूजन किया था।