लोकेश सोलंकी, नईदुनिया इंदौर। जिले की नौ विधानसभा सीटों पर चुनावी मुकाबले के ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अनुमान लगाने में राजनीतिक पंडित भी पसीना-पसीना हो रहे हैं। कई नई बातें जिले के विधानसभा चुनाव को इस बार अनोखा बना रही है। चुनावी राजनीति से खुद को दूर बताने वाले भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर क्षेत्र-एक की सीट से उतारना ही एक मात्र फैक्टर नहीं है। पहली बार दो ग्रामीण सीटों पर दमदार त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिती बनी है। इसके साथ ही बीते विधानसभा चुनाव के परिणामों का अंतर भी ऐसा है जो उम्मीदवारों को सुकून नहीं लेने दे रहा।
जिले की कुल नौ विधानसभा सीटों में से 2018 में सात ऐसी सीटें थी जिन पर जीत का अंतर दस हजार वोटों से भी कम था।2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डाली जाए तो नौ में से पांच सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी और चार पर कांग्रेस का परचम लहराया था। हालांकि उपचुनाव की स्थिति बनी और पांच-चार का आंकड़ा बदलकर छह-तीन में तब्दील हो गया था। उपचुनाव को नजरअंदाज कर मुख्य चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो कशमकश और उम्मीदवारों की बैचेनी का कारण साफ हो जाएगा।
इंदौर क्षेत्र दो में 71 हजार वोटों से ज्यादा और क्षेत्र चार में 49 हजार से ज्यादा वोटों की जीत ही बड़ी जीत थी। शेष सभी सात सीटों पर जीत का आंकड़ा 10 हजार से कम था। इसमें भी क्षेत्र पांच में सबसे छोटी जीत सिर्फ 1132 वोटों से हुई थी। मुख्य चुनाव में सांवेर की जीत सिर्फ 2945 वोटो की थी। राऊ की जीत सिर्फ 5703 वोटों की, तीन नंबर में जीत 5751 वोटों की, महू की जीत सिर्फ 7157 वोटों की एक नंबर की जीत 8163 वोटों की और देपालपुर की जीत सिर्फ 9044 वोटों की थी।
पांच साल पहले की छोटी जीत पार्टियों के लिए बड़ी मुसीबत बनती दिख रही है। ऐसे में इस बार का चुनाव भी बड़े-बड़े वादों के साथ लड़ा जा रहा है। पहलेे बार दोनों दलों नें घोषणाओं के पिटारे में नकद लाभ से लेकर ऐसे वादेें कर दिए हैं जो प्रदेश के खजाने के आकार और स्थिति लिहाज सेे भी पूर्व में कभी दोनों ही प्रमुख दल करने से बचते रहे हैं। इस बार बड़ी घोषणाओं के बाद भी चुनावी लहर जैसा कुथ नहीं है।
सट्टा बाजार और चौराहों की चर्चा में कयास लगाए जा रहे हैं कि मुकाबला 5-4 का रह सकता है। हालांकि पांच सीटें किसके पास होगी और चार सीटें किसके हिस्से में आएगी ये भी कोई नहीं बता पा रहा। इसके पीछे ठोस कारण भी है। प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में शुमार क्षेत्र एक में कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी तो भाजपा की ओर से मोदी का रोड शो हो चुका है। क्षेत्र में स्थानीय-बाहरी के मुद्दे के जोर पकड़ने के कारण बड़े नाम के बाद भी मुकाबला आखिर तक कांटे का बना हुआ है।
दो नंबर क्षेत्र में भाजपा आश्वस्त नजर आती है लेकिन कांग्रेस ने टिकट बदला है। नगर निगम चुनाव में भाजपा के इस गढ़ में कांग्रेस इस क्षेत्र में चार पार्षदों को जिताने में कामयाब रही। तीन नंबर क्षेत्र में मौजूदा विधायक आकाश विजयवर्गीय बेदखल हो चुके हैं। पहले डर था कि कांग्रेस में जोशी बंधुओं का आपसी झगड़ा पार्टी पर भारी पड़ेगा लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेसी परिवार एक हो गया। पिंटू जोशी टीम के दम पर उत्साहित है दूसरी ओर भाजपा उम्मीदवार गोलू शुक्ला कम समय में संगठन के बूते पर वैतरणी पार करने की उम्मीद पाल बैठे हैं।
चार नंबर में अयोध्या में भाजपा भले ही आश्वस्त हो लेकिन टिकट के पहले का भाजपा का अंदरुनी द्धंद और सामाजिक वोटों का समीकरण कांग्रेस की उम्मीदें जवां कर रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेस ने सिंधी समाज के नंदलाल माटा को टिकट दिया था और सीट जीत भी ली थी।
पांच नंबर में अल्पसंख्य और आदिवासी वोट का मिश्रण और बीती छोटी जीत के साथ परंपरागत टिकट वितरण ने भाजपा के लिए राह कंटीली कर कांग्रेस के मुकाबले में ला दिया है। राऊ में टिकट दोनों दलों में टिकट का दोहराव हुआ है। हारे हुए चेहरे पर दाव लगाने के साथ भाजपा ने जल्द टिकट घोषित कर दिया था। इसका लाभ मिलेगा या नुकसान होगा यह परिणाम बताएगा।
चुनावी मुकाबले के बीच पालदा से लेकर विष्णुपुरी तक भाजपा नेताओं के दलबदल ने मुकाबला रोचक कर दिया है। सांवेर में मंत्री तुलसी सिलावट दो चुनाव लगातार जीत चुके हैं अब एंटीइनकबेंसी से पार पाना होगा। देपालपुर में भाजपा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी परेशानी खड़ा कर रहा है। दूसरी और महू में निर्दलीय कांग्रेस से टूटकर खड़ा हुआ है। हालांकि महू में निर्दलीय किस दल का नुकसान करेगा यह आंकलन करना आसान नहीं है।