By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Fri, 08 Mar 2024 01:03:45 PM (IST)
Updated Date: Fri, 08 Mar 2024 06:22:51 PM (IST)
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर International Women Day 2024। स्त्री अब किसी मामले में पुरुषों से कमतर नहीं रहीं, वे हर क्षेत्र में अपनी लगन, मेहनत और हौसले के दम पर अपना सिक्का जमा रही हैं। अब तो कठिन माने जाने वाले कामों में भी महिलाएं दमखम से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। फिर चाहे वह पायलट, लोको पायलट या बस चलाने की ही बात क्यों न हों। इन क्षेत्रों के बारे में आमतौर पर माना जाता है कि ये पुरुषों के अधिकार वाले क्षेत्र हैं लेकिन अब इनमें भी शहर की महिलाएं उत्साह के साथ अपना कौशल दिखा रही हैं। जब ठान ले तो क्या नहीं कर सकती नारी।
शौक इतना कि सीखी कार, अब उड़ा रही विमान
शहर की रागी वर्मा
कमर्शियल पायलट के रूप में चार्टर प्लेन उड़ाती हैं। इन्होंने बताया कि साल 2008-09 में मैंने कमर्शियल पायलट का लाइसेंस लिया था। इस दौरान मैं कैबिन क्रू भी थी। हालांकि गाड़ी चलाने का शौक बचपन से ही था। 16 साल की उम्र में मैंने कार चलाना सीख ली थी। इसके बाद साल 2018 से मैंने विमान उड़ाना शुरू किया। अभी तक मैं 2500 घंटे की फ्लाइंग कर चुकी हूं। मैं नान शेड्यूल फ्लाइट उड़ाती हूं। मैंने यह करियर अपनी शादी के बाद शुरू किया था। इसमें मेरे घर वालों का भी काफी सहयोग रहा। वे बताती हैं जहां शेड्यूल फ्लाइट नहीं जाती है, लोग मेरी कंपनी के चार्टर हायर करके उन स्थानों पर जाते हैं। इसमें ज्यादातर अभिनेता, नेता व अन्य प्रसिद्ध लोग शामिल होते हैं। अपने करियर के बीच में मैंने अपने बेटे के लिए पांच साल का ब्रेक भी लिया था।
पैरालाइज मां के लिए नहीं मिला ड्राइवर तो ड्राइविंग सीखने की ली शपथ
37 वर्षीय निशा शर्मा आइबस सेवा में हैं और पिछले डेढ़ साल से पिंक बस चला रही हैं। निशा को कुल पांच साल से अधिक का चालक का अनुभव है। निशा ने बताया जब वे तीन साल की थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद एक बार मां को पैरालाइज हो गया, पड़ोस में गाड़ी थी लेकिन अस्पताल ले जाने के लिए कोई चालक नहीं मिला। पूरी रात मां को तपड़ते हुए घर में ही रखना पड़ा। इसके बाद मैंने ड्राइविंग सीखने की शपथ ली। मैं एक कार लेकर पर्यटकों को घुमाने लगी। वहीं कोरोना में कई जगह आक्सीजन के सिलेंडर भी पहुंचाए। वे बताती हैं मुझे नियमों में रहकर गाड़ी चलाने का बेहद शौक है, बीआरटीएस में इस चीज का काफी आनंद आता है।
ठान ही लिया था कि कचरा गाड़ी ही चलानी है
30 वर्षीय रानी पचलाने 2018 से
नगर निगम में कचरा गाड़ी चला रही हैं। फिलहाल ये वार्ड नंबर 49 में कार्यरत हैं। इन्होंने बताया कि मैंने शुरुआत से कचरा गाड़ी चलाने का ठान लिया था। इसके पीछे की वजह बताते हुए वे कहती हैं मुझे वाहन चलाने का शौक है, शहर की स्वच्छता में मेरा योगदान हो सके इसलिए मैंने कूड़ा गाड़ी चलाना शुरू किया। रानी पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। इन्होंने बताया कि हादसे के बाद पिता का देहांत हो गया। इसलिए मुझे जल्दी नौकरी शुरू करनी पड़ी। इसके बाद मैंने ड्राइविंग स्कूल से ड्राइविंग सीखी। शुरुआत में कूड़े की बदबू से काफी दिक्कत होती थी, लेकिन कभी हार नहीं मानी। स्टाफ के साथ जिस मोहल्ले में गाड़ी लेकर जाती थी, वहां लोग बहुत प्रोत्साहित करते थे। शायद महिलाओं के लिए हमेशा के लिए रास्ता खुल गया हो।
एनजीओ में लड़कियों की देखभाल के लिए गई थी, बन गई चालक
35 साल की ललिता उजले साल 2015 से कैब चला रही हैं। ललिता ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मैं सोसायटी में काम तलाशने गई थी। मैंने यहां लड़कियों की देखभाल का काम मांगा था। वहां संयोगवश मुझे कार चलाने के लिए आफर किया गया। हालांकि बचपन से ही मेरा कार चलाने का सपना था। आफर मिलते ही मैंने तुरंत स्वीकार कर लिया। 2015 में मैंने ड्राइविंग सीखी, वहीं एक साल बाद कई महिलाओं को ड्राइविंग सिखाई। इस साल से मैंने कैब चलाना शुरू किया है। शुरुआत में महिलाओं का काफी सहयोग मिलता था लेकिन पुरुष काफी मनोबल को गिराते थे। किंतु धीरे-धीरे जब मैं इसमें सफल होती गई तो लोग विश्वास करने लगे। मेरा 16 साल बेटा भी मुझसे कहता है कि मुझे भी ड्राइविंग सिखा दो, जरूरत पड़ने पर काम आऊंगा।
ट्रेनों की सेहत इनके हाथ में
सीनियर तकनीशियन मधुबाला मोनिया 1992 से ट्रेनों का रखरखाव कर रही हैं। वे बताती हैं कि पहली पोस्टिंग चित्तौड़गढ़ में थी। जिसके बाद इंदौर कोचिंग डिपो आई। उस समय यहां मैं अकेली महिला तकनीशियन थी। लेकिन साथ काम करने वाले अन्य कर्मचारियों का भरपूर सहयोग मिला। हम यहां सिक लाइन, जहां कोच रिपेयर होने के लिए आते हैं, में काम करते हैं। यहां पर कोच से ट्राली अलग करना, व्हील बदलना, स्प्रिंग बदला आदि काम करते हैं। सभी उपकरण काफी वजनी होते हैं, इसलिए लिफ्ट की मदद ली जाती है।
काम देख पिता ने मना किया था
सहायक तकनीशियन वंदना पाटीदार ने बताया किसी बड़ी कंपनी में जाब करने से बेहतर सरकारी नौकरी करना है। इसलिए रेलवे की ग्रुप डी की परीक्षा पास की। पहली बार जब पिता के साथ यहां काम करने आई तो पिता ने देखा कि यहां तो भारी उपकरण भी उठाने पड़ते हैं। ट्रेनों के नीचे काम करना पड़ता है। यह देख पिता ने काम करने से मना कर दिया था लेकिन मम्मी ने बात संभाली। यहां हर दिन काम के दौरान कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। अब तो आदत हो गई है।
बहुत मेहनत से पाई पोस्ट
सहायक तकनीशियन एकता शम्मी ने बताया कि इस पोस्ट के लिए काफी मेहनत की थी। अभी ज्वाइन किए ज्यादा समय नहीं हुआ है। पिटलाइन पर रखरखाव के लिए आने वाली ट्रेनों में आयल लेवल चेक करना, सीटों का कवर बदला, पर्दे बदलना, नटबोल्ड बदलना, उपकरण यहां से वहां रखना आदि काम किए जाते हैं। यह जिम्मेदारी का काम है, इसलिए जरा सी भी चूक नहीं की जा सकती है।