Ram Navami 2023: कपिल पारिख, मांडू। भारत में भगवान श्री राम की एकमात्र वनवासी स्वरूप लिए चतुर्भुज प्रतिमा मध्य प्रदेश के मांडू में विराजमान है। लगभग 1200 वर्ष पुरानी प्रतिमा के दर्शन करने देश और दुनिया से लोग यहां पहुंचते हैं। इस प्रतिमा का इतिहास भक्ति से जुड़ा हुआ है। साधु को चतुर्भुज स्वरूप में भगवान राम ने स्वयं स्वप्न देकर तलघर से प्रतिमाएं जनकल्याण के लिए बाहर निकलवाने के आदेश दिए थे। राम नवमी के अवसर पर यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
नवमी पर लगता है बड़ा मेला
मांडू जितना ऐतिहासिक और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, उससे भी कहीं ज्यादा प्रसिद्ध अपने धार्मिक इतिहास के कारण रहा है। यहां रामनवमी पर राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मूर्ति स्थापना के बाद यहां राम नवमी के अवसर पर प्राचीन काल से मेला भी लगता आ रहा है। कहते हैं देखी दुनिया सारी घूम आए चारों धाम, मांडवगढ़ के राम मंदिर में देखे चतुर्भुज श्री राम, करी थी तपस्या महंत जी ने भारी दर्शन देते थे जिनको अवध बिहारी।
यहां चतुर्भुज श्री राम मंदिर का प्रामाणिक इतिहास धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। पुणे महाराष्ट्र के संत रघुनाथ दास जी महाराज को चतुर्भुज स्वरूप में सपने मैं आकर प्रभु ने कहा मांडू स्थित पूर्व दिशा में गूलर वृक्ष के नीचे भैरव की प्रतिमा है और प्रतिमा के नीचे तलघर है। उसमें मेरे इसी विग्रह से युक्त प्रतिमा है, अतः तुम उसे तलघर से जनकल्याण के लिए बाहर निकलवाओ। संत रघुनाथ दास जी भ्रमण करते मांडू पहुंचे और स्वप्न के अनुसार गूलर के वृक्ष की खोज की। पूर्व राजवंश की तत्कालीन महारानी को स्वप्न से अवगत कराया। खुदाई हुई और तलघर से मूर्तियां निकाली गई।
संवत 1823 में प्रतिमाओं को यहां मंदिर में स्थापित किया गया। इतिहासकारों के अनुसार मुगल शासकों द्वारा मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। प्रतिमा की रक्षा के लिए संतों ने तलघर में प्रतिमा को सुरक्षित स्थान पर छिपा दिया था। प्रमाणिक इतिहास के अनुसार पंवार वंश की तत्कालीन महारानी सकू बाई पवार ने प्रतिमा को हाथी पर सवार कर धार ले जाने की तैयारी की। हाथी कई प्रयासों के बाद भी आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुआ और प्रभु इच्छा अनुसार यहीं भव्य मंदिर बनवाकर प्रतिमाओं को स्थापित कर दिया गया।
प्रभु श्री राम की चतुर्भुज चमत्कारी प्रतिमा में चरण पीठ के नीचे संवत 957 अंकित है। प्रतिमा के दाहिने हाथ में धनुष बाए हाथ में बाण हैं, धनुष लिए हाथ के नीचे वाले हाथ में कमल। जिस हाथ में बाण हैं उसके नीचे वाले हाथ में माला है। जिस हाथ में कमल है उसके नीचे हनुमान जी एवं जिस हाथ में माला है और हाथ में अंगद जी हैं और चरण पीठ के नीचे साथ वानर स्थित है। साथ में जानकी माता की मूर्ति है। लक्ष्मण जी की मूर्ति के चरण में नल और नील है। प्रतिमाओं के साथ निकली दास हनुमान की प्रतिमा भगवान के सामने और सूर्य नारायण देव की प्रतिमा मंदिर में ही है वहीं भगवान राम के साथ जैन तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ की निकली मूर्ति यहां जैन श्वेतांबर मंदिर में विराजमान है।