Datia Health News दतिया (नईदुनिया प्रतिनिधि)। झोलाछाप डाक्टरों की लापरवाही मासूमों की जान पर भरी पड़ने लगी है। पिछले चार दिन में इसके चलते दो मासूम की मौत हो गई। मंगलवार को जहां भांडेर के पंडोखर क्षेत्र में झोलाछाप डाक्टर के उपचार से 14 माह के बालक की जान चली गई थी। वहीं शुक्रवार को जिगना क्षेत्र की पंचायत पठारी के गांव काम्हर में ऐसे ही झोलाछाप डाक्टर के जबरन इलाज से मासूम 11 माह की बालिका की सांसें थम गई। पुलिस ने इस संबंध में मामला दर्ज कर आरोपित की तलाश शुरू कर दी है। लगातार घट रही इस तरह की घटनाएं स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों को कठघरे में खड़ी करती है। आखिर समय रहते कई बार शिकायतों के बाद भी झोलाछाप डाक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। जब कहीं किसी की जान पर बन आती है तब जाकर स्वास्थ्य महकमा नींद से जागता है। इसके बाद भी कार्रवाई के नाम सिर्फ रस्म अदायगी कर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।
हद तो तब है जब जिन फर्जी झोलाछाप डाक्टरों के क्लीनिक सील करने की कार्रवाई की जाती है, वे झोलाछाप डाक्टर ही दो दिन बाद फिर से अपना क्लीनिक खोल लेते हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी फिर कभी ऐसे हालात पर गौर नहीं करते। इन स्थितियों ने मासूमों की जान से खिलवाड़ करने वालों के हौंसले बुलंद कर रखें हैं। दतिया शहर में भी दिनारा रोड पर ही दर्जनों झोलाछाप डाक्टर्स के क्लीनिक धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। जिन पर अभी तक कोई कार्रवाई स्वास्थ्य विभाग ने नहीं की।
जिगना थाना क्षेत्र के ग्राम काम्हर निवासी हनुमंत अहिरवार की 11 माह की बच्ची वैष्णवी को बुखार और जुकाम की शिकायत थी। जिसका इलाज करने वाले झोलाछाप डाक्टर दीपक पुत्र प्रताप परिहार ने स्वजन के मना करने बावजूद मासूम बच्ची को उपचार के लिए इंजेक्शन लगा दिया। इंजेक्शन लगते ही बच्ची की हालत बिगड़ गई और उसकी सांसे थम गई। यह देखकर घबराए स्वजन उसे लेकर जिला अस्पताल लेकर दौड़े।
जहां चिकित्सक ने जांच उपरांत उसे मृत घोषित कर दिया। स्वजन का आरोप है कि वो सिर्फ दवा के लिए गांव के उक्त डाक्टर के पास गए थे, लेकिन उसने जबरन बच्ची को इंजेक्शन मना करने के बाद भी लगा दिया। इधर जैसे ही झोलाछाप डाक्टर को बच्ची के मरने की खबर लगी वह मौके से फरार हो गया। जिगना थाने के एएसआई महेश श्रीवास्तव ने बताया कि मामले की सूचना प्राप्त हुई है। पुलिस ने मर्ग कायम कर मामला जांच में लिया है।
गत मंगलवार को भांडेर अनुभाग के पंडोखर में भी एक झोलाछाप तथाकथित डाक्टर द्वारा किए गए 14 माह के बालक के उपचार के बाद दम तोड़ने का मामला सामने आया था। मृत बालक के स्वजन उपचार दौरान बच्चे की हालत बिगड़ने पर उसे भांडेर लाए और डा.आरएस परिहार को दिखाया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डा.परिहार के अनुसार बच्चा पहले ही दम तोड़ चुका था।
झोलाछाप डाक्टर का यह मामला जब सामने आया तो स्वास्थ्य महकमा सक्रिय हुआ। गुरुवार को नसबंदी शिविर के दौरान भांडेर पहुंचे सीएमएचओ दतिया डा.आरबी कुरेले, बीएमओ डा.आरएस परिहार के साथ पंडोखर झोलाछाप डाक्टर के क्लीनिक पर पहुंचे। लेकिन वह बंद मिला।
लोगों के अनुसार घटना के बाद से ही क्लीनिक संचालक अपना क्लीनिक बंद करके चला गया था। इसी बीच जानकारी मिली कि गांव में एक अन्य बंगाली डाक्टर भी यहां प्रैक्टिस करता है। वहां झोलाछाप डाक्टर मरीजों का उपचार करते पाया गया। उससे मौके पर जब चिकित्सा कार्य संबंधी कागज मांगे गए तो वह उपलब्ध नहीं करा पाया। लिहाजा मौके पर उसका क्लीनिक बंद कर उसे सील कर दिया गया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आए दिन झोलाछाप डाक्टरों के उपचार के चलते लोग अपनी जान गंवाते रहे हैं। फिर क्या कारण है कि स्वास्थ्य विभाग इन झोलाछापों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई नहीं करता। इसका मुख्य कारण कि ग्रामीण लोगों को स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने में महकमे का असफल रहना भी माना जा सकता है। सरकारी अस्पताल तो खोल दिए गए, लेकिन वहां या तो डाक्टरों का अभाव है या सुविधाएं नहीं हैं। वह समय पर खुलते तक नहीं। सीएचसी भांडेर खुद इन समस्याओं से पीड़ित है।
न केवल यहां डाक्टरों का अभाव है, साथ ही कई सुविधाएं भी यहां होने के बावजूद चालू नहीं हैं। ऐसी ही स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में है। स्वास्थ्य सेवाओं में इन खामियों का फायदा झोलाछाप डाक्टर्स उठा ले जाते हैं। अधिकांश ग्रामीण जुकाम, खांसी, बुखार, आदि होने पर किसी मान्यता प्राप्त डाक्टर के पास या सरकारी अस्पताल न पहुंचकर बीस से तीस रुपये के मामूली शुल्क पर उपचार कराने अपने नजदीकी झोलाछाप डाक्टर की मदद लेते हैं। सामान्यतः हाई एंटीबायोटिक दवाओं के सहारे ये झोलाछाप डाक्टर अपने रोगी को स्वस्थ भी कर देते हैं। लेकिन जब उपचार के दौरान मर्ज बिगड़ जाए तो फिर हाथ भी खड़े कर देते हैं।
प्राइवेट प्रेक्टिस करने वाले झोलाछाप डाक्टर्स ने अब मेडिकल स्टोर की आड़ में अपने पेशे को करना शुरू कर दिया है। कई जगह मेडिकल स्टोर के सहारे अपने पुराने पेशे को बरकरार रखते हुए मरीजों का उपचार यह झोलाछाप डाक्टर करते हैं और शिकायतों के अभाव में इनका यह धंधा फलता फूलता रहता है।
इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियमित रूप से निरीक्षण भी नहीं किया जाता। इन पर कार्रवाई तब होती है जब किसी झोलाछाप डाक्टर के उपचार के चलते किसी की मौत हो जाए। इसी प्रकार उचित डिग्री के अभाव में सील किया क्लीनिक भी कुछ समय बाद फिर खुल जाता है। जिससे ऐसे झोलाछापों को कार्रवाई का भी कोई विशेष भय नहीं रहता।