भोपाल (नवदुनिया रिपोर्टर) webinar in Bhopal:। निहत्थे नागरिकों को घेरकर गोलियों से भून डालने की घटना 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में हुई थी, जिसके बारे में याद कर आज भी मन सिहर उठता है। हालांकि यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि ऐसा ही एक नरसंहार 1931 में बुंदेलखंड के चरणपादुका नामक कस्बे में भी हुआ था। यहां पर 14 जनवरी 1931 को मकर संक्रांति के मेले में हो रही सभा को अंग्रेजी सेना ने घेर लिया था। आमसभा में उपस्थित निहत्थे लोगों पर बेरहमी से गोलियों की बौछार की गई। अंग्रेज सरकार के आंकड़े के मुताबिक इस गोलीकांड में 21 लोगों की मृत्यु हुई और 26 लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
यह बात वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत 'मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जरा याद इन्हें भी कर लो" विषय पर मंगलवार को वेबिनार में कही। इसका आयोजन पीआइबी और आरओबी, भोपाल द्वारा किया गया था। श्री बादल ने में चंद्रशेखर आजाद, रघुनाथ शाह, शंकर शाह, राम सहाय तिवारी, सदाशिव मलकापुरकर समेत कई ज्ञात और अज्ञात शहीदों को याद किया और उनकी गाथाएं सुनाई।
कहानियों को संरक्षित करने की जरूरत
वेबिनार में माधव राव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने मप्र की महिला स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के योगदान की बात की। उन्होंने मंडला के रामगढ़ की रानी अवंतीबाई, धार की रानी द्रौपदी बाई, सुभद्रा कुमारी चौहान, 1920 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली काशी देवी, चंद्रप्रभा दुबे, शांताबाई, तुलसीबाई, मंडला की सोनी बाई गौंडिन के योगदान को याद किया। उन्होंने नरसिंहपुर जिले की चिंचली गांव की शहीद गौराबाई की गाथा भी सुनाई जो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हुई थीं। दोनों वक्ताओं ने कहा कि आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले बलिदानियों की कहानियों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए उसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।
पीआइबी, भोपाल के अपर महानिदेशक प्रशांत पाठराबे ने कार्यक्रम का पूरा विवरण पेश किया और कहा कि इसका उद्देश्य स्थानीय गुमनाम शहीदों की गाथाओं को सामने लाना है, ताकि आज के युवा उनके द्वारा किए बलिदान को जान सकें और उससे प्रेरणा ले सकें। पीआईबी के निदेशक अखिल नामदेव ने कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन किया। पीआईबी मीडिया एवं संचार अधिकारी प्रेमचंद्र गुप्ता ने कार्यक्रम का संचालन किया। सहायक निदेशक शारिक नूर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। वेबिनार में अलग-अलग क्षेत्र के कई विद्वानों ने हिस्सा लिया।