Rani Kamlapati Bhopal: शौर्य और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं रानी कमलापति, जिनके नाम पर हुआ हबीबगंज रेलवे स्टेशन
रानी की खूबसूरती से सम्बन्धित एक कहावत भोपाली सुनाते हैं - ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैया। रानी तो कमलापति, बाकी सब रनैया।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Sat, 13 Nov 2021 02:00:34 PM (IST)
Updated Date: Sat, 13 Nov 2021 06:32:14 PM (IST)
Rani Kamlapati Bhopal: भोपाल (सुशील पांडेय)। जिन रानी कमलापति के नाम पर अब हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण किया गया है, उनका इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। गोंड शासक रानी कमलापति ने अफगान शासक दोस्त मोहम्मद से बचने के लिए कमलापति महल के बाहर जल समाधि ले ली थी। भोपाल में उस स्थान पर आज रानी की भव्य प्रतिमा है। बड़ी झील की मेढ़ पर बना कमलापति महल एएसआई के अधीन है। पुरातत्ववेत्ता पूजा सक्सेना बताती हैं कि सन 1720 में गिन्नौरगढ़ पर गोंड शासक निजामशाह का अधिकार था। सन् 1720 में निजामशाह की हत्या उसके ही रिश्तेदार आलमशाह ने की थी, जिसके पीछे चैनपुरबाड़ी के जागीरदार जसवंत सिंह का हाथ माना जाता है वह रिश्ते में निजामशाह का भतीजा था। राज्य में अस्थितरता फैल जाने पर निजामशाह की रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के किले को छोड़कर भोपाल में बड़े तालाब के किनारे बने अपने किले में आकर रहने लगी। इस बीच अफगान दोस्त मोहम्मद भोपाल पर अधिकार का प्रयास कर रहा था। इससे पहले वह जगदीशपुर पर अधिकार कर उसका नाम इस्लामनगर रख चुका था।
कहते हैं कि दोस्त मोहम्मद के बढ़ते दबाव के कारण रानी कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब की ओर कूद कर जान दे दी, तब यहां से कोलांस नदी की धारा बहती थी। निश्चित ही रानी के आखरी दिन संघर्ष भरे बीते होंगे, किंतु इसका लिखित इतिहास नहीं मिलता। केवल किंवदंती मिलती है जिसमें कहा गया कि रानी ने दोस्त मोहम्मद से बचने के लिए छोटे तालाब में कूद कर आत्मोत्सर्ग किया था। इसके उपरान्त दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया तथा उसने रानी के पुत्र नवलशाह को भी मार डाला।
रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के गोंड शासक निजामशाह की पत्नी थी। उनके पिता का नाम कृपाराम चंदन गोंड था। कहते हैं कि रानी इतनी खूबसूरत थी कि जब वह पान खातीं तो पान की पीक गले में दिखाई देती थी। रानी की खूबसूरती से सम्बन्धित एक कहावत भी भोपाली सुनाते हैं -
ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैया।
रानी तो कमलापति, बाकी सब रनैया।
1930 में ही हो गया था हबीबुल्लाह का इंतकाल : भोपाल स्वातंत्र्य आंदोलन समिति के संस्थापक सचिव और इतिहासकार डा. आलोक गुप्ता का कहना है कि भोपाल का हबीबगंज स्टेशन नए नामकरण को लेकर सुर्खियों में है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि नवाब हबीबुल्लाह द्वारा सन 1979 में क्षेत्र की जमीन रेलवे को दान दिए जाने के कारण इस स्टेशन का नाम उनके नाम पर हबीबगंज रख दिया गया था। यह टिपिकल भोपाली गप है। क्योंकि जिन नवाब हबीबउल्लाह खान का जिक्र इतिहास में मिलता है, वह नवाब सुल्तान जहां बेगम के पोते व अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान के भतीजे थे जो कि सन 1930 में ही इंतकाल फरमा गए थे। ऐसे में यह सोचना कि इंतकाल के 49 बरस बाद सन 1979 में जमीन पर लौट कर उन्होंने यह जमीन रेलवे को दान दी, कोरी भोपाली गप नहीं तो और क्या है। वहीं पुरातत्ववेत्ता पूजा सक्सेना बताती हैं कि भोपाल के इतिहास में हबीबउल्लाह नाम के किसी प्रभावी व्यक्ति का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। स्टेशन के लिए हबीबउल्लाह नाम के आदमी द्वारा जमीन दान करने का भी कोई उल्लेख नहीं है।