आकाश माथुर, नवदुनिया, सीहोर: 1989 से भोपाल लोकसभा सीट पर भाजपा का गढ़ है। 1989 में भाजपा के सुशील चंद्र वर्मा ने इस सीट पर अपना कब्जा किया। इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन शुरू से ही यहां आमने-सामने की टक्कर रही। पहले कांग्रेस की टक्कर जन संघ और फिर जनता दल से था। बाद में यह मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा। ये मुकाबला हमेशा सीधा-सीधा रहा।
अब भी मुकाबला आमने-सा मने का ही है, लेकिन इस मुकाबले में कांग्रेस लगातार पिछड़ती जा रही है और भाजपा मजबूत होती जा रही है। इसके बाद भी कई पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में भाग्य आजमाने उतरते हैं। हर बार इन प्रत्याशियों की जमानत जब्त होती है, लेकिन वे मैदान में उतरते हैं और मुकाबला करते हैं। हर साल भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को छोड़कर सबकी जमानत जब्त हो जाती है। पर कुछ चुनाव ऐसे भी हुए जब 43 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।
भोपाल लोकसभा सीट पर हर बार 10 से ज्यादा ही प्रत्याशी मैदान में होते हैं। जिनमें से दो को छोड़कर सबकी जमानत जब्त हो जाती है, लेकिन 1989, 1991 और 1996 के चुनाव में 36 से 43 प्रत्याशी तक मैदान में उतरे और इन प्रत्याशियों में से सिर्फ सात प्रत्याशी ही जमानत बचा पाए। बाकि 111 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। इस दौरान कई प्रत्याशियों को 100 के आस-पास मत मिले। ये क्रम लगातार 1989, 1991 और 1996 तक जारी रहा। इसके बाद भी प्रत्याशी भाग्य आजमाते रहे।
1989 का चुनाव भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनाव था। इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के कायस्थ प्रत्याशी केएल प्रधान जो सांसद थे। उनके सामने कायस्थ समाज के ही सुशील चंद्र वर्मा को मैदान में उतारा जिन्होंने पहली बार भाजपा के लिए यह सीट जीती और लगातार चार चुनाव में इस सीट पर भाजपा को जीत दिलाई। इस चुनाव में 39 प्रत्याशी मैदान में थे।
और कुल 11 लाख 20 हजार 927 मतदाता थे। जिनमें से छह लाख 17 हजार 985 मतदाताओं ने मतदान किए, लेकिन छह लाख पांच हजार 605 मत ही मान्य हुए। बाकि निरस्त हो गए। इनमें से दो लाख 81 हजार 169 वोट सुशील चंद्र वर्मा को मिले। एक लाख 77 हजार 515 वोट एनके प्रधान को मिले। साथ ही रऊफ खान को 97 हजार 886 वोट मिले। यही तीन अपनी जमानत बचा पाए। वहीं 36 की जमानत जब्त हो गई। जिन्हें 7784 से 197 तक मत मिले।
1991 के चुनाव म फिर भाजपा ने भोपाल सीट पर जीत दर्ज कराई। इस बार सुशील चंद्र वर्मा के सामने भोपाल नवाब परिवार के मनसूर अली खान पटोदी थे। उन्हें कांग्रेस ने बड़े भरोसे के साथ मैदान में उतारा था, लेकिन उनका यह दाव नहीं चल सका और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।
इस चुनाव में कुल 36 प्रत्याशी मैदान में थे। साथ ही 11 लाख 60 हजार 113 मतदाता थे। जिनमें से पांच लाख 84 हजार 688 मतदाताओं ने मतदान किया। जिसमें से पांच लाख 76 हजार 232 मतदाताओं के मत मान्य किए गए और बाकि मत निरस्त हो गए। वहीं सुशील चंद्र वर्मा को तीन लाख आठ हजार 946 वोट सुशील चंद्र वर्मा को मिल। वहीं मनसूर अली खान पटोदी को दो लाख छह हजार 738 मत मिले।
इसके अलावा बचे 34 प्रत्याशियों को 26 हजार 716 से 115 वोट मिले, 26 हजार 716 वोट जो तीसरे नंबर के प्रत्याशी को मिले वो स्वामी अग्निवेष थे। उन्हें मात्र 4.64 प्रतिशत वोट ही मिले थे।
1996 के चुनाव में 45 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया था। जिनमें 43 की जमानत जब्त हुई थी। इस बार भी सुशील चंद्र वर्मा ने जीत दर्ज कराई। इस बार कुल 14 लाख 56 हजार 14 मतदाता थे। जिनमें से सात लाख 32 हजार 726 मतदाताओं ने मतदान किया था। वहीं सात लाख 17 हजार 295 मत ही मान्य हुए, बाकि निरस्त किए गए। इस चुनाव में सुशील चंद्र वर्मा को तीन लाख 53 हजार 427 मत मिले थे।
वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी कैलाश अग्नीहोत्री को दो लाख दो हजार 533 मत ही मिले। वहीं जिन 43 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई उन्हें 52 हजार 865 से 223 तक ही मत मिले। इसके बाद के चुनावों में भी लगातार लोग भाग्य आजमाते रहे और दो को छोड़ कर अधिकतर की जमानत जब्त होती रही। इस बार भी करीब 10 प्रत्याशी तो मैदान में होंगे और इनमें से दो को छोड़कर बाकियों के लिए परिणाम सुखद नहीं होंगे।