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चुनाव तारीख: 13 मई 2024
बोलपुर लोकसभा सीट 1967-71 में कांग्रेस के पास थी, लेकिन 1971 में हुए चुनाव के बाद उक्त सीट पर माकपा ने कब्जा कर लिया था। 1985 में बोलपुर सीट पर हुए उपचुनाव में सोमनाथ चटर्जी माकपा से सांसद चुने गए। इसके बाद माकपा की जीत का ऐसा सिलसिला चला कि 2004-09 तक सोमनाथ ही सांसद बने रहे। उनके लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद बोलपुर लोकसभा सीट पर 2009 में हुए चुनाव में माकपा ने वीरभूम में माकपा के सांसद रहे डॉ राम चंद्र डोम को मैदान में उतारा था। जीत दर्ज करने के बाद वह 2014 तक सांसद बने रहे, लेकिन 2014 में हुए चुनाव में तृणमूल ने तख्ता पलट दिया। डेमोग्राफी और विकास वीरभूम जिले के अंतर्गत बोलपुर एक छोटा सा शहर है, जो नोबेल पुरस्कार विजयी विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर के बसाए विश्वभारती विश्वविद्यालय के लिए जाना जाता है। यह विश्वविद्यालय एक सांस्कृतिक विरासत है, जो पूर्व और पश्चिम दोनों के आदर्शों के संगम को चिन्हित करता है। विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा की गई थी। यहां मनाए जाने वाला पौष मेला पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता है, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार देवी सती को पिता दक्ष द्वारा आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में अपमानित होना पड़ा, परिणामस्वरूप उन्हें अपना देह त्याग करना पड़ा। जिसके बाद दुखी होकर शिव ने तांडव नृत्य किया। देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर शिव जहां-जहां आगे बढ़े, वहां-वहां सती के शरीर का कोई न कोई अंग गिरता चला गया। माना जाता है कि उन स्थानों पर आज शक्तिपीठ हैं। तारापीठ को उस जगह के रूप में मान्यता प्राप्त है, जहां सती की आंख गिरी थी। कंकलिताल जहां सती की कमर गिरी थी। इसके अलावा, नलहाटी में नलेतेश्वरी मंदिर को भी शक्तिपीठ माना जाता है, जो एक पहाड़ी पर स्थित है। केतुग्राम, मंगलकोट, आउसग्राम, बोलपुर, नानूर, लाबपुर और मयूरेश्वर विधानसभा सीटें बोलपुर के तहत आती हैं। बोलपुर की खास बातें बोलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पश्चिम बंगाल के 14 संसदीय क्षेत्रों में से एक है। 1952 में देश के लिए हुए पहले लोकसभा चुनावों में यह संसदीय क्षेत्र नहीं था। 1967 में देश के लिए चौथे लोकसभा निर्वाचन के लिए इस संसदीय सीट का गठन किया गया। इस लोकसभा क्षेत्र में बीरभूम और बर्दवान जिलों के कुछ हिस्सों को भी शामिल किया है। जिला मुख्यालय होने के कारण इस क्षेत्र सभी बड़े प्रशासनिक कार्यालय हैं। इस क्षेत्र को नोबेल विजेता रवींद्र नाथ टैगोर के नाम से भी जाना जाता है। 1921 में श्री रवींद्रनाथ टैगोर ने यहां एक ग्रामविद्यालय की स्थापना की थी। जिसे बाद में शांतिनिकेतन कहा गया।