मल्टीमीडिया डेस्क। दिल्ली की तासीर में कई राजवंशों के साम्राज्य का अक्स दिखाई देता है। कुछ किलोमीटर का फासला तय करते ही कई सुलतानों, राजा-महाराजाओं और नवाबों के दौर के दीदार हो जाते हैं। दिल्ली सल्तनत का एक ऐसा ही राजवंश था तुगलक वंश। इस वंश का एक सुलतान फिरोजशाह तुगलक था, जिसका जन्म 1309 में हुआ था और हिंदुस्तान के मुकम्मल हिस्सों में उसकी हुकुमत थी। उसने 1351 से 1388 तक राज किया और अपनी सल्तनत में चांदी के सिक्के चलाये। 1351 में ताजपोशी के साथ ही उसने अपनी रियाया के सभी कर्जे माफ कर दिए।
फिरोजशाह की फतह
1360 में सुल्तान फिरोजशाह ने उड़ीसा के जाजनगर पर हमला करके वहाँ के शासक भानुदेव तृतीय को परास्त कर पुरी के जगन्नाथपुरी मंदिर को ध्वस्त किया था। 1361 ई. में फिरोजशाह ने नगरकोट पर आक्रमण किया। यहाँ के जामबाबनियों से लड़ती हुई सुल्तान की सेना लगभग 6 महीने तक रेगिस्तान में फँसी रही, बाद में जामबाबनियों ने सुल्तान की अधीनता को स्वीकार कर लिया और वार्षिक कर देने के लिए सहमत हो गये।
फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में एक नया शहर बसाया था। जिसका नाम था फिरोजाबाद। फिलहाल दिल्ली में जो कोटला फिरोजशाह आबाद है, वह कभी उसके दुर्ग का काम करता था। इस किले को कुश्के-फिरोज यानी फिरोज के महल के नाम से पुकारा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि फिरोजाबाद, हौज खास से लेकर हिंदूराव हॉस्पिटल तक आबाद था। लेकिन अब इसके अवशेष भी ढूंढे नहीं मिलते हैं। इतिहासकार फिरोजाबाद को दिल्ली का पांचवां शहर मानते हैं।
किले के बचे हैं सिर्फ अवशेष
वर्तमान में इस किले के अवशेषों के बीच एक मस्जिद है। इसके साथ ही इसमें अशोक स्तंभ है। पहले कभी यहां कई महल थे, लेकिन अब इनके अवशेष दिखाई देते हैं। किले में पत्थरों से बनी हुई तीन मंजिला इमारत है। इमारत की छत पर फिरोजशाह ने अंबाला के टोपरा से स्तंभ लाकर लगवाया था। इस पर मौर्य शासकअशोक की राजाज्ञा का अंकन हैं। यह ब्राह्मी लिपि में है। इस स्तंभ की ऊंचाई करीब 13 मीटर है। इसे स्तंभ को सबसे पहले 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था। इसी तरह का दूसरा स्तंभ फिरोजशाह ने मेरठ के आसपास से मंगवाया था। उसको हिंदूराव अस्पताल के पास लगवाया था।
फिरोजशाह तुगलक को बुलंद इमारतों की तामीर करवाने का काफी शौक था। हौज खास में फिरोजशाह तुगलक का मकबरा है। फिरोजशाह के शासन में दिल्ली में कई मस्जिदें भी बनाई गईं।फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपने पुत्र फ़तेह खान के जन्मदिवस के मौके पर फतेहाबाद शहर की स्थापना की थी। इसके साथ ही उसने जौनपुर शहर की भी स्थापना अपने बड़े भाई जौना खान की याद में की थी।