रायपुर। दाऊ कदाऊ कल्याण सिंह (डीकेएस) सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में हमारे-आपके टैक्स से सरकारी खजाने में जमा हुए करोड़ों फूंक दिए गए। यह तो गड़बड़ी की एक तस्वीर है। दूसरी यह कि बिना टेंडर, वर्कऑर्डर के कंपनियों ने लाखों-करोड़ों के उपकरण सप्लाई कर दिए।
इस प्रत्याशा में पैसा तो डॉ. पुनीत गुप्ता (पूर्व अधीक्षक, जो निलंबित हैं) दिलवा ही देंगे। इनमें 75 लाख रुपये की चार वर्चुअल बॉडी भी हैं। ये उपकरण ऐसा है जो पूरी तरह से इंसान के जैसा है। मनुष्य के शरीर से खून कैसे निकालना है, ब्लड प्रेसर कैसे जांचना है... डॉक्टर्स, नर्स,पैरामेडिकल स्टाफ को प्रैक्टिकल नॉलेज देने के लिए इसे उपयोगी बताया गया। मगर आज ये बॉडी कमरे में बंद हैं, कोई उपयोग नहीं। दूसरा कंपनी का पैसा अलग फंस गया है। सूत्रों के मुताबिक 30-40 करोड़ रुपये के उपकरण प्रत्याशा में आए।
अब इन सभी मामलों की जांच के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित कर दी है। सीएस सुनील कुजूर की अध्यक्षता वाली यह कमेटी महीनेभर में रिपोर्ट देगी, कमेटी ने जांच शुरू कर दी है। बतां दें कि पूर्व की भाजपा सरकार ने सिर्फ 94.90 करोड़ स्वीकृत किए थे।
इसके विरूद्ध जाकर डॉ. गुप्ता ने अलग-अलग कंपनियों को छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) के माध्यम से 110 करोड़ का भुगतान करवाया दिया,जो 15.10 करोड़ रुपये अतिरिक्त था। इतना ही नहीं 64 करोड़ का अतिरिक्त लोन लिया, सरकार पर कुल 140 करोड़ की लेनदारी है। बतां दें कि एजी की टीम ने अप्रैल-मई में ऑडिट किया है, जिसमें ढेरो आपत्तियां हैं।
इसलिए स्वीकार नहीं हुआ डॉ. गुप्ता का इस्तीफा- गड़बड़ी, अनियमितता सामने आने, फिर अधीक्षक पद से हटाए जाने के बाद डॉ. गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया था। वे चुपचाप मेडिकल कॉलेज के आवक-जावक में इस्तीफा छोड़कर चले गए थे। मगर सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया, निलंबित कर दिया। सरकार को अंदेशा था कि अगर इस्तीफा स्वीकार करते हैं तो डॉ. गुप्ता के विरूद्ध जांच संभव नहीं है। कार्रवाई और रिकवरी नहीं हो सकती।
इन-इन चीजों में हुए करोड़ों के बारे-न्यारे
- मरीजों को अस्पताल के अंदर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए मुविंग व्हीकल खरीदे गए। इनकी कीमत 70 लाख रुपये है। जबकि आज तक इनका इस्तेमाल नहीं हुआ।
- अस्पताल के पीछे सरकारी क्वार्टर्स थे जिनमें 20 परिवार रहते थे। उन्हें तुड़वाकर जमीन को कब्जा में लिया गया। यहां गार्डन बनाने की प्लानिंग थी, आधा काम हुआ आधा नहीं।
- अस्पताल के फ्रंट स्पेस में, बैक में लाखों रुपये की लागत से हैंडिंग प्लांट लगाए गए। सब सूख गए, कमले टूट-फूट गए।
- सूत्रों के मुताबिक सिर्फ लग्जरी फर्नीचर में ही दो करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए। इनमें पूर्व अधीक्षक डॉ. गुप्ता का वह रेस्ट रूम भी शामिल है जिसमें बेड, सोफे और सेल्फ लगी हुई है। जिसे पुलिस ने सील कर दिया है।
4.50 करोड़ रुपये महीने का था सिक्योरिटी, सफाई का खर्च- अस्पताल के शुरू होने से लेकर, डॉ. गुप्ता के इस्तीफे तक यानी करीब छह महीने तक सिक्योरिटी, सफाई, लांड्री, निजी एंबुलेंस के नाम पर महीने में 4.50 करोड़ खर्च हो रहे थे। इन सभी को कम किया गया, आज खर्च 70 लाख रुपये रह गया। वहीं नियम विरूद्ध किराए पर दी गई दुकानों का अनुबंध खत्म कर दिया गया है।
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