श्रवण शर्मा, रायपुर। Raipur News कम उम्र में ही तंबाकू और जर्दा वाला पान खाने की आदत पड़ चुकी थी। धीरे-धीरे यह नशा ऐसा चढ़ा कि सुबह से लेकर रात तक हमेशा मुंह में तंबाकू युक्त पान चबाते थे। यहां तक रात में सोते समय भी मुंह में तंबाकू दबाने की लत हो चुकी थी। माता, पिता, रिश्तेदारों ने खूब समझाया लेकिन लत नहीं छूटी। कुछ सालों पहले जैन मुनि के प्रवचन से प्रभावित हुए। मुनि ने एक दिन, दो दिन तंबाकू नहीं खाने और किसी भी तरह का नशा नहीं करने का संकल्प दिलाया। शुरू-शुरू में नशा छोड़ने में परेशानी हुई। आखिरकार नशे की लत छूट गई। अब वे दूसरों को भी नशा नहीं करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
35 साल बाद छोड़ा तंबाकू खाना
विमलनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर भैरव सोसाइटी के अध्यक्ष कमल लोढ़ा बताते हैं कि मात्र 15 की उम्र में तंबाकू खाने की गलत आदत पड़ गई थी। घर वालों से काफी डांट खानी पड़ती थी, दुकान में ग्राहकी के दौरान बात करते समय थूकने के लिए बार-बार बाहर जाना पड़ता था। काफी कोशिश की पर आदत नहीं छूटी। कुछ सालों पहले मुनि शाम्य तिलक म.सा. के सान्निध्य में धर्म ध्यान करने लगे। जब मुनिजी को पता चला तो उन्होंने दो-दो घंटे का संकल्प दिलाया। फिर एक दिन का, कुछ दिन छोड़कर दो-दो दिन का संकल्प लिया। इस तरह दो-तीन महीने तक संकल्प लेता रहा। इसके बाद ऐसी आदत छूटी कि अब समाज के लोग अब, मेरा उदाहरण देकर दूसरे लोगों को नशा छोड़ने प्रेरित करते हैं।
30 साल रही लत
भरत सोनीगरा बताते हैं कि 18 की उम्र में पान, गुटखा, पान-पराग की लत लगी। दिनभर में 25 से ज्यादा पान, पाउच खाते थे। पूरी कमाई इसी में खर्च होती थी। घर वाले परेशान थे, एक बार समवेत शिखर तीर्थ जाने का अवसर मिला। जैन मुनियों की दिनचर्या से इतने प्रभावित हुए कि नशा नहीं करने की ठान ली। कई बार संकल्प टूटा, रातों को नींद नहीं आती थी। संतों ने हौसला बढ़ाया, नशा ना करने का संयम दिलाया। तीन महीने के संकल्प के बाद नशा ऐसा छूटा कि अब कोई तंबाकू, जर्दावाला पान खाकर करीब आए तो बर्दाश्त नहीं होता।अब, मैं दूसरों को अपना उदाहरण देकर नशा छुड़वाने की अपील करता हूं।
गांजा, शराब से की तौबा
सत्ती बाजार के अशोक, दिनेश, राजेंद्र बताते हैं कि हमें गांजा, भांग और शराब का नशा करने की आदत पड़ गई थी। नशा ने हमारे करियर को तबाह कर दिया था। परिचित, रिश्तेदार बात करने से भी कतराते थे। अपने बच्चों को हमारे साथ उठने, बैठने भी नहीं देते थे। हम जीवन से निराश हो गए थे।ऐसे में परिवार वालों के साथ मंदिर जाकर संतों का प्रवचन सुनने लगे। शुरू-शुरू में प्रवचन, पूजा करना दकियानूसी लगता था। संतों के प्रभाव से मन ऐसा बदला कि अब नशे से नफरत हो गई है। नशा करने वालों को समझाते हैं कि अपना जीवन व्यर्थ ना करें।
26 को अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस
छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेशभर में नशा नहीं करने का अभियान 26 जून को चलाने का निर्णय लिया है। गांव-गांव में युवाओं को नशा नहीं करने का संदेश दिया जाएगा। नाटक, नाचा-गम्मत आदि कार्यक्रमों से जागरूक करेंगे। अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 26 जून 1989 से की थी। इसका उद्देश्य नशे की लत छुड़ाना और दुष्प्रभाव से बचाना है।