CG Lal Bhaji-1 and CG Chaulai-1: रायपुर। भाजियों का गढ कहे जाने वाले छत्तीसगढ में कृषि वैज्ञानिकों ने भाजियों की दो नई किस्में विकसित की हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के वैज्ञानिकों ने लाल भाजी और चौलाई भाजी की नवीन उन्नत किस्में विकसित की हैं। इन नवीन किस्मों को सी.जी. लाल भाजी-1 और सी.जी. चौलाई-1 नाम दिया गया है। भाजियों की यह किस्में प्रचलित उन्नत किस्मों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना अधिक उपज देने में सक्षम हैं। ये नवीन किस्में छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों से इन भाजियों की जैव विविधता के संकलन तथा उन्नतीकरण द्वारा तैयार की गई हैं जो स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। इन दोनों किस्मों से किसान केवल एक माह की अवधि में 60 से 70 हजार रुपये प्रति एकड़ की आय प्राप्त कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बीज उप समिति द्वारा इन दोनों किस्मों को छत्तीसगढ़ राज्य के लिए जारी करने की अनुशंसा की गई है।
यहां मिलती हैं 36 किस्म की भाजियां
छत्तीसगढ़ में भाजियों का विशिष्ट महत्व है। यहां प्रचलित रूप से 36 किस्म की भाजियां पाई जाती हैं, जिन्हें लोग बहुत चाव के साथ खाते हैं। यहां पाई जाने वाली इन्हीं भाजियों में से चौलाई और लाल भाजी सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में इन भाजियों के आकार- प्रकार और विशिष्ठताओं में अंतर भी देखने को मिलता है। यहां भाजियों की विभिन्न प्रजातियों की बहुलता एवं विविधता होने के कारण छत्तीसगढ़ की पूरे देश में अलग पहचान है। भाजियां यहां भोजन का अनिवार्य अंग हैं और प्रत्येक किसान अपने खेतों या बाडियों में भाजियां अवश्य लगाता है। इनमें पाए जाने वाले पाचन योग्य रेशे पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं।
पाचन तंत्र को मजबूत बनाती हैं भाजियां
भाजियां विभिन्न पोषक तत्वों यथा खनिजों एवं विटामिन से भरपूर होती हैं, जिससे हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है। भाजियां खाने में हल्की और बेहद सुपाच्य होती हैं। गर्मी के दिनों में इनका सेवन काफी फायदेमंद माना जाता है। ठंड के दिनों में भी पालक, मेथी जैसी भाजियों का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है। इसके साथ ही इनमें प्रोटीन और अयरन भी भरपूर मात्रा में होता है, जिससे शरीर को आंतरिक मजबूती मिलती है।
पोषण वाटिका कार्यक्रम में शामिल
कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में विगत दिनों आयोजित बीज उप समिति की बैठक में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की नवीन प्रजातियों को छत्तीसगढ़ राज्य में प्रसारित करने की मंजूरी दी गई। इन नवीन किस्मों में लाल भाजी की किस्म सी.जी. लाल भाजी-1 और चैलाई की किस्म सी.जी. चैलाई-1 प्रमुख रूप से शामिल हैं। भाजी की इन दोनों नवीन विकसित किस्मों को छत्तीसगढ़ के बाडी कार्यक्रम एवं पोषण वाटिका कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
इन किस्मों की यह हैं विशेषताएं
> सी.जी. लाल भाजी-1 छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक उपज देने वाली लाल भाजी की किस्म है जो अरका अरूणिमा की तुलना में 43 प्रतिशत तक अधिक उपज दे सकती है।
> यह कम रेशे वाली स्वादिष्ट किस्म है जो तेजी से बढ़ती है तथा जिसका तना एवं पत्तियां लाल होती हैं।
> यह किस्म सफेद ब्रिस्टल बीमारी हेतु प्रतिरोधक है।
> यह एकल कटाई वाली किस्म है।
> यह किस्म स्थानीय परिस्थितियों में 140 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन देती है।
> सी.जी. चैलाई-1 अधिक उत्पादन देने वाली नवीन किस्म है जो अरका अरूषिमा की तुलना में 56 प्रतिशत तथा अरका सगुना की तुलना में 21 प्रतिशत तक अधिक उपज दे सकती है।
> यह किस्म स्थानीय परिस्थितियों में 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज दे सकती है।
> यह किस्म सफेद ब्रिस्टल बीमारी हेतु प्रतिरोधक है।
> यह भी एकल कटाई वाली किस्म है।
> यह किस्में तेजी से बढ़ने के कारण खरपतवार से प्रभावित नहीं होती और अंतरवर्ती फसल हेतु उपयुक्त है।