जावेद खान अंतागढ़ (नईदुनिया)। वर्षों के इंतजार के बाद आखिर छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क निकालने की रावघाट परियोजना का अब बहुत जल्द आरंभ होना तय है। भिलाई स्टील प्लांट के लिए आक्सीजन की भूमिका निभाने वाले रावघाट परियोजना में रावघाट तक रेल पटरी बिछाना इतना आसान नहीं था, वर्षों की रणनीति एवं उचित प्रबंधन की वजह से इंजीनियरों एवं सुरक्षा बलों ने इस परियोजना को लगभग अमलीजामा पहना ही दिया।
भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए अभी लौह अयस्क की आपूर्ति पड़ोस की दल्लीराजहरा की खदानों से होती है लेकिन दल्लीराजहरा की खदानों में अब केवल एक से दो साल के उपयोग के लायक ही लौह अयस्क बचा है। भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन का कहना है कि अगर रावघाट से लौह अयस्क के खनन का काम शुरू नहीं हुआ तो 31 लाख 53 हजार टन वार्षिक उत्पादन वाले भिलाई संयंत्र में तालाबंदी की नौबत आ सकती है। कांकेर और नारायणपुर जिले में स्थित रावघाट की पहाड़ियों में लौह अयस्क के छह ब्लाक हैं। जिनमें 712.48 मिलियन टन लौह अयस्क होने का अनुमान है। छत्तीसगढ़ सरकार ने नौ जून, 2003 को 456 मिलियन टन क्षमता वाले एफ ब्लाक के कोरेगांव की खदान को निजी कंपनी को देने की मंजूरी दे दी। हालांकि बाद में चार जून, 2009 को भारत सरकार ने भिलाई इस्पात संयंत्र को ही पूरे एफ ब्लाक में खनन का अधिकार सौंप दिया। किंतु इस परियोजना के प्रारंभ होने से पहले बीएसपी प्रबंधन द्वारा अंतागढ़ क्षेत्र के लोगों के साथ किया जाने वाले सौतेले व्यवहार से काफी निराशा है।
रावघाट परियोजना में अधिकतर माइंस ब्लाक अंतागढ़ ब्लाक में आती है। साथ ही रेल पटरी के बिछाने में यहां के लोगों की जमीन, जंगल, पर्यावरण सब बर्बाद ही हुआ है। ऐसे में जनता का विरोध जायज है, क्योंकि इस परियोजना से यहां की जमीनों, जंगलों और नदियों को कुल मिलाकर यहां के समूचे जनजीवन को भारी ख़तरा है। अंतागढ़ ब्लाक में अथाह खनिज संपदा है जाहिर है इन माइंस प्रभावित क्षेत्र के लोगों को इन खदानों में कुछ फायदा भी नजर आ रहा है, किंतु प्रबंधन द्वारा अंतागढ़ क्षेत्र के लोगों को प्राथमिकता न देकर नारायणपुर में प्रबंधन के सारे कार्यालय खोलने एवं टाउनशिप को लेकर प्रबंधन का गोलमोल रवैया अंतागढ़ के लोगों को परेशान कर रहा है।
बीएसपी प्रबंधन ने तत्कालीन वनमंत्री विक्रम उसेंडी के कार्यकाल में अंतागढ़ के मदरासिपारा में डीएवी स्कूल खुलवाया पर विडंबना यह कि स्थानीय अंतागढ़ के बच्चों को इस स्कूल में एडमिशन नहीं दिया गया। इसी कार्यकाल में बीएसपी प्रबंधन ने अंतागढ़ के पुराने नगर पंचायत कार्यालय में डिस्पेंसरी की शुरुआत की पर ये भी कुछ दिनों में डाक्टरों की कमी की वजह से बंद कर दिया गया। कच्चे लोहे का परिवहन अंतागढ़ ब्लाक से ही होना है पर बीएसपी प्रबंधन का अंतागढ़ के लोगों से किया जाने वाला व्यवहार समझ से परे है। लोगों का कहना है अंतागढ़ के पूर्व में जनप्रतिनिधियों की कमजोरी ही अंतागढ़ के विकास में बाधा बनी है। बीएसपी पर यदि समय रहते दबाव बनाया गया होता तो आज डीएमएफ फंड का उपयोग गढ़िया महोत्सव जैसे कार्यक्रमों में न कराकर माइंस प्रभावित क्षेत्रों के विकास कार्य में कराया जाता। माइंस प्रभावित गांव में सुविधा के नाम पर सिर्फ सुरक्षा बलों द्वारा स्वास्थ्य शिविर लगाया जाना और समय-समय पर ग्रामीणों को उनके जरूरतों का सामान प्रदान किया जाना ही है। जबकि बीएसपी प्रबंधन द्वारा डीएमएफ फंड से कराने वाले विकास कार्य इन प्रभावित गांव के धरातल पर नजर नहीं आता। शायद यही वजह है अब अंतागढ़ के युवा भी उन गाव वालों का साथ देने को तैयार हैं जो नारायणपुर जिले में शामिल होना चाहते हैं। बता दें अंतागढ़ ब्लाक के रावघाट प्रभावित करीब 12 पंचायत के ग्रामीण नारायणपुर जिले में खुद को शामिल किए जाने के लिए कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंप चुके हैं। इसकी वजह भी जायज है, क्योंकि अंतागढ़ ब्लाक का आखरी छोर बैहासालेभाट ग्राम पंचायत की नारायणपुर जिले से दूरी 23 किलोमीटर है और वहीं अंतागढ़ के लोगों को नारायणपुर जिले में जाने के लिए सिर्फ 50 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी। जबकि अंतागढ़ सहित आमाबेड़ा घाटी में बसने वालों को कांकेर जिले में अपने कार्य के ये जाने में 100 किमी से भी दूरी है। यदि वो नारायणपुर जिले में शामिल कर दिए जाएं तो उन्हें महज 10 से अधिकतम 50 किमी का सफर तय करना पड़ेगा। आम आदमी पार्टी के संत राम सलाम का कहना है कि अंतागढ़ को नारायणपुर जिले में ही शामिल हो जाना चाहिए। नारायणपुर के बाद नगर पंचायत अंतागढ़ ही सबसे बड़ा नगर पंचायत होगा और और भिलाई स्टील प्लांट द्वारा अंतागढ़ में भी विकास कार्य कराए जाएंगे। कांकेर जिले के अंतिम छोर में होने की वजह से हमे प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। साथ ही कांकेर जिले के जनप्रतिनिधियों का बीएसपी प्रबंधन पर दबाव नहीं बनाया जाना, बीएसपी प्रबंधन द्वारा अंतागढ़ की उपेक्षा करने की प्रमुख वजह रही है। मंडी के पूर्व उपाध्यक्ष हंसराज देहारी का कहना है कि रावघाट प्रबंधन और कांकेर जिले के जनप्रतिनिधियों द्वारा अंतागढ़ क्षेत्र के लोगों की अनदेखी करना उन्हें आहत करता है। बेहतर होता हम नारायणपुर जिले में शामिल हो जाते इससे यहा के बेरोजगारों को रोजगार के बेहतर अवसर मिलते और नारायणपुर के बाद अंतागढ़ सबसे बड़ा नगर पंचायत होता। जिससे यहा के लोगों का फायदा होता। स्थानीय युवक जयंत रंगारी का कहना है कि हमने वर्षों से बीएसपी के यहां प्रोजेक्ट शुरू होने का इंतजार किया पर जब नारायणपुर और अंतागढ़ में आने वाले रावघाट की जन सुनवाई भानुप्रतापपुर में हो और प्रभावित क्षेत्र के लोगों का ही वहां उपस्थित न होना यह बताने के लिए काफी है कि बीएसपी प्रबंधन अंतागढ़ क्षेत्र के लोगों के लिए कितनी संवेदनशील है। यहां सोचने वाली बात यह है कि जब बीएसपी प्रबंधन रावघाट में खनन कार्य प्रारंभ करने वाली है। ऐसे में प्रबंधन द्वारा जनसुनवाई भानुप्रतापपुर में करना लोगों के समझ से परे है साथ ही इस जनसुनवाई में खनन प्रभावित ग्रामीणों की अनुपस्थिति भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। समाचार पत्रों में प्रकाशित खबर के अनुसार बीएसपी प्रबंधन ने नारायणपुर जिले के खनन प्रभावित ग्रामों की सूची में ग्राम अंजरेल को शामिल किया है, जो सरकारी रिकार्ड में अंतागढ़ ब्लाक में शामिल है और ग्राम अंजरेल के सारे सरकारी कार्य अंतागढ़ ब्लाक के माध्यम से होते हैं।
अंतागढ़ में युवाओं का कहना है सिर्फ एक ग्राम को नारायणपुर में शामिल करने के बजाय अंतागढ़ ब्लाक को ही नारायणपुर जिले में शामिल कर दिया जाए।जिससे कांकेर जिले में हो रही उपेक्षा से ज्यादा बेहतर आंगढ़ का भविष्य होगा।
क्षेत्रीय विधायक अनूप नाग का इस विषय मे कहना है कि बीएसपी द्वारा खनन प्रभावित ग्रामों के विकास के लिए 36 करोड़ रुपये वनविभाग के कैंपा मद में दिया गया है। जिसके कार्ययोजना हेतु अधिकारियों के साथ भानुप्रतापपुर में बैठक आयोजित की गई थी। किंतु रावघाट खनन प्रभावित क्षेत्र सहित अंतागढ़ के लोगों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। जब कभी जनसुनवाई होगी उसमे क्षेत्र के सभी लोग उपस्थित होंगे और मेरे द्वारा बीएसपी प्रबंधन से लगातार बात की जा रही है। जिससे अंतागढ़ क्षेत्र के लोगों को उनका उचित हक दिलाया जा सके। इस विषय मे पूर्व वनमंत्री, सांसद, एवं बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने बताया कि मेरे कार्यकाल में आइटीआइ, डीएवी स्कूल, शासकीय कालेज सहित बीएसपी के हास्पिटल जैसे कार्यों को कराया गया किंतु आज इन संस्थानों के रखरखाव व उचित प्रबंधन का कार्य वर्तमान सरकार का है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है जिस क्षेत्र में अथाह खनिज संपदा होती है वहां के लोगों का प्राकृतिक जीवन उनके सांस्कृतिक तानेबाने बिखर जाते हैं। किंतु इसका फायदा यहां निवास करने वाले मूल निवासियों को नहीं मिलता।