कांकेर/भानुप्रतापपुर। गणेश उत्सव की शुरुआत 7 सितंबर को हो चुकी है और यह त्योहार 17 सितंबर को अनंत चतुदर्शी के दिन समाप्त होगा। इस दौरान भक्त भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ के एक अनोखे गणेश मंदिर के बारे में, जिसकी कहानी दिलचस्प है।
कांकेर जिले के ग्राम संबलपुर में 100 साल पुराना गणेश मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। भक्तों का मानना है कि बप्पा के द्वार पर पहुंचने वाले हर भक्त की इच्छाओं की पूर्ति होती है। पं. लालबहादुर मिश्रा शास्त्री ने बताया कि यहां सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को गणेश को चोला चढ़ाया जाता है व खिचड़ी महाप्रसादी भोग चढ़ाकर भक्तों में बाटा जाता है।
गणेशजी का दर्शन करने रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, दुर्ग, राजनादगांव और इसके साथ अन्य जिलों से बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। मंगलवार को पूजे जाने के कारण गणेशजी का हनुमानजी से गहरा लगाव है। यही कारण है कि बप्पा यहां कुमकुम रेंज में हैं। प्रतिदिन पंडित स्वयं भगवान गणेश के लिए नियमित भोजन बनाते हैं।
मंदिर में प्रतिमा स्थापित करने की भी एक रोचक कहानी है। मंदिर के इतिहास के बारे में पूछताछ करने पर बुजुर्गों ने बताया कि एक पंडित ने कांकेर राजवाड़ा की ग्रीष्मकालीन बासला में तालाब में मूर्ति को तैरते देखा। इसके बाद गणेश प्रतिमा को संबलपुर लाने का निर्णय लिया गया।
भगवान गणेश की प्रतिमा को बैलगाड़ी से संबलपुर लाने का काम शुरू हुआ। चूंकि यह मूर्ति छोटी थी, लेकिन इसे लाने के लिए बैलगाड़ी मंगवाई गई और फिर यात्रा शुरू हुई। कुछ दूरी तय करने के बाद बैलगाड़ी के पहिए अचानक टूट गए।
लोगों ने दूसरी बैलगाड़ी मंगवाई और फिर से प्रयास किया, लेकिन इस बार भी वही हुआ, पहिए टूट गए। भगवान गणेश ने अपने भक्तों की परीक्षा ली। इस तरह 7 किलोमीटर की इस यात्रा में एक के बाद एक कुल 12 बैलगाड़ियों के पहिए टूटते चले गए। अंत में भगवान गणेश की प्रतिमा को संबलपुर लाए जाने के दौरान 12वां बैलगाड़ी का पहिया। इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को कोई हिला नहीं सका, फिर वहीं मंदिर का निर्माण किया गया।