भिलाई। वर्ष 1957 में स्थापित एशिया के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के भिलाई इस्पात संयंत्र के विस्तार परियोजना का काम करीब एक दशक पहले यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था। इस परियोजना को वर्ष 2015 तक पूरा हो जाना था, लेकिन परियोजना के काम में देरी होती रही। कुल 61,870 करोड़ स्र्पये की इस विस्तार परियोजना में देरी के साथ-साथ लागत भी बढ़ती रही है।
इससे पहले 14 जून 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भिलाई इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण और विस्तारीकरण योजना को राष्ट्र को समर्पित किया था। उस समय कन्वर्टर-3 का काम अधूरा था। इसी काम के पूरा होने के बाद आज इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने परियोजना को राष्ट्र को समर्पित किया, लेकिन आज भी इस्पात संयंत्र कुछ अन्य परियोजनाओं का काम अधूरा पड़ा है।
जब तक इनका काम पूरा नहीं होगा, संयंत्र में किसी भी स्थिति में उत्पादन शुरू नहीं हो सकेगा। दूसरी तरफ प्लांट की पुरानी अधोसंरचना में भी पूरी तरह जर्जर और कमजोर हो चुकी है। इसके भी जीर्णोद्धार की जरूरत है।
बता दें कि यूपीए सरकार के समय 60 साल पुराने भिलाई इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण और विस्तार की शुरुआत हुई थी, लेकिन इस परियोजना के काम में काफी देरी होती रही। विस्तार परियोजना का बहुत सा काम अभी भी अधूरा ही है। अभी कास्टर नंबर-4 का निर्माण अधूरा है।
जब तक सभी परियोजनाएं पूरी नहीं होतीं, तब तक विस्तारित हिस्से में उत्पादन शुरू नहीं हो सकेगा। बता दें कि भिलाई इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण पर अब तक साढ़े 19 हजार करोड़ स्र्पये खर्च हो चुके हैं। दुनिया की सबसे लंबी 130 मीटर की सिंगल रेल पटरी बनाने वाले यूनिवर्सल रेल मिल में एक नया कूलिंग बेड तीन साल बाद भी नहीं सका।
भिलाई इस्पात संयंत्र इस वक्त लौह अयस्क की किल्लत से जूझ रहा है। दल्ली राजहरा खदान में गुणवत्तायुक्त लौह अयस्क की कमी है। इसकी भरपाई ऊंचे दर पर सेल की दूसरे खदानों से हर माह 30 रैक आयरन ओर खरीदकर की जा रही है। इस पर करीब 1200 प्रति टन सिर्फ माल ढुलाई पर खर्च हो रहा है।
इस्पात लागत बढ़ती जा रही है। वहीं, रावघाट खदान में अब तक खनन शुरू नहीं हो सका है। इस प्रोजेक्ट की मानीटरिंग पीएमओ करता है। देश के प्रमुख प्रोजेक्ट पर नजर रखी जा रही है, उसमें रावघाट भी शामिल है। हकीकत यह है कि आज तक पेड़ों की कटाई नहीं हो सकी, जिससे खनन स्र्का हुआ है।